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कह सकते है। विशेष स्वभाव का अभाव उपलब्ध हो सकता है। अतः जिनका व्यतिरेक
उपलब्ध है वे विशेष स्वभाव है।
= सामान्य अभाव
नित्य, अनित्य, एक, अनेक, अस्ति, नास्ति, भेद, अभेद, भव्य, अभव्य, वक्तव्य, अवक्तव्य और परमस्वभाव यह तेरह द्रव्य के सामान्य स्वभाव है।
१) नित्य स्वभाव : द्रव्य के अनेक पर्याय और अनेक स्वभाव है। पर्याय और स्वभाव बदलने पर भी द्रव्यमें अलग-अलग 'यह वही द्रव्य है' ऐसा प्रत्यय जिस स्वभाव की वजह से होता है उसे नित्यस्वभाव कहते है।
२) अनित्य स्वभाव : द्रव्य अनेक पर्यायों में परिणत होता है। अनित्य स्वभाव है।
३) एक स्वभाव : हरेक स्वभाव एक ही द्रव्य में रहता है अतः एक प्रतीत होता है वह उसका एक स्वभाव है। (जैसे वस्त्र अनेक तंतुओ के जोड से बना है फिर भी एक ही दिखता है।
४) अनेक स्वभाव : द्रव्य एक ही है फिर भी अनेक प्रतीत होता हो यह अनेक स्वभाव है।
५) अस्ति स्वभाव : द्रव्य का अपना स्वभाव अविनाशित रूप से रहता है। वह अस्ति स्वभाव है। उदा. घट रूप में होना।
६) नास्ति स्वभाव : द्रव्यांतर का स्वभाव प्रस्तुत द्रव्य में नहीं है, यह नास्ति स्वभाव है। उदा. घट में पट के धर्म का अभाव है। अर्थात् घट में पट के धर्म नास्ति स्वभाव से है।
७) भेद स्वभाव : संज्ञा के भेद से, संख्या के भेद से, लक्षण के भेद से और प्रयोजन के भेद से द्रव्य में भेद होता है। उसे द्रव्य स्वभाव कहते है। उदा. द्रव्य गुणी है पर्याय गुण है ये दोनों के नाम संज्ञा के भेद है अतः दोनों
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भिन्न है।
८) भव्य स्वभाव : कोई भी द्रव्य कालांतर में अन्य रूप में परिवर्तित हो सकता है। द्रव्य की इस परिणमन शक्ति को भव्य स्वभाव कहते है। (जैसे दूध दहीं में परिवर्तित हो सकता है तो दूध में दहीं का भव्य स्वभाव कहते है। दार्शनिक परिभाषा में इसे कुर्वद्रूपत्व या स्वरूपयोग्यता कहते है।)
९) अभव्य स्वभाव : भव्य स्वभाव से विपरीत अभव्य स्वभाव है। अनेक रूप में परिवर्तित होते हुए भी द्रव्य अपने मूल धर्म से च्युत होकर यह कभी दूसरे द्रव्य के साथ एकरूप नहीं होता। यह उसका अभव्य स्वभाव है।
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१०) वक्तव्य स्वभाव प्रत्येक द्रव्य, द्रव्य के रूप में नित्य है और पर्याय के रूपमें अनित्य है। द्रव्य के रूप में वह 'इदं नित्यं' यह शब्दोच्चार का विषय बनता है। पर्याय के रूपमें 'अयमनित्यः' इस शब्दोच्चार का विषय बना है। इस तरह द्रव्य पर्याय प्रत्येक रूपमें उच्चार का विषय बनना वक्तव्य स्वभाव है।
११) अवक्तव्य स्वभाव : एक द्रव्य एक साथ नित्य और अनित्य दोनों धर्म से समन्वित होकर (एक शब्द में) वाणी का विषय नहीं बन सकता। यह उसका अवक्तव्य स्वभाव है।
१२) परम स्वभाव: पारिणामिक भाव द्रव्य का परम स्वभाव है।
१३) पारिणामिक भाव का अर्थ है - अपने आप में रहना ।
मूर्तस्वभाव-अमूर्तस्वभाव-चेतनस्वभाव अचेतनस्वभाव- शुद्धस्वभाव अशुद्धस्वभाव-एकप्रदेशस्वभावअनेकप्रदेशस्वभाव-विभाव और उपचरित स्वभाव यह दस विशेष स्वभाव है। छठवी गाथा में सामान्य गुण का विवरण करते समय मूर्त वगैरह की व्याख्या की गई है।