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अष्टमं परिशिष्टम्
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थोडाने पोचवे पण गुण तो बधे प्रवर्ते ज छे एम धारवो। ए रीतें गुण पर्यायनो उत्पादव्ययध्रुवरूप धर्म कहेवो ए चोथुरूप का।
[३८] तथा सर्वे पदार्था अस्तिनास्तित्वेन परिणामिनः। तत्रास्तिभावानां स्वधर्माणां परिणामिकत्वेन उत्पादव्ययौ स्तः। नास्तिभावानां परद्रव्यादीनां परावृत्तौ। नास्तिभावानां परावृत्तित्वेनाप्युत्पादव्ययौ ध्रुवत्वं च अस्तिनास्तिद्वयौ इति पञ्चमः।
[३८] अर्थ- तथा सर्व द्रव्यमां अस्ति तथा नास्ति ए बे स्वभाव परिणमि रह्या छ। तिहां जे अस्तिस्वभाव छे ते स्वद्रव्यादिकनो छ। ते जेवारें ज्ञानगुण घट जाणतो हतो तेवारें घट ज्ञाननी अस्तिता हती, अने तेज घटध्वंस थये कपालज्ञान थयुं ते वारें घटज्ञाननी अस्तितानो व्यय थयो, अने कपालज्ञाननी अस्तितानो उत्पाद थयो, ए रीते अस्तितानो उत्पादव्यय छे तेज रीतें नास्तितानो पण उत्पादव्यय जाणवो। जे पहेली घटनास्तिता हती ते पछे घटध्वंसे कपालनास्तिता थइ एम परद्रव्यने पलटवे नास्तिता पलटे छ। ते स्वगुणने परिणामिक कार्यने पलटवे करीने अस्तिता पलटे छे, अने जिहां पलटवापणो तिहां उत्पादव्यय थायज। एम द्रव्यमा सामान्य स्वभाव धर्म छे तेमां जेम संभवे तेम श्री प्रभुनी आज्ञायें उपयोग देइने उत्पादव्ययपणो करवो अने अस्तिनास्तिपणे ध्रुव छे ए पांचमो अधिकार कह्यो।
[३९] तथा पुनः अगुरुलघुपर्यायाणां षड्गुणहानिवृद्धिरूपाणां प्रतिद्रव्यं परिणमनाद्धानिव्यये वृद्ध्युत्पादो वृद्धिव्यये हान्युत्पादः ध्रुवत्वं चागुरुलघुपर्यायाणाम्। एवं सर्वद्रव्येषु ज्ञेयम्। तत्त्वार्थवृत्तौ आकाशाधिकारेयत्राप्यवगाहकजीवपुद्गलादिर्नास्ति तत्राप्यगुरुलघुपर्यायवर्तनयावश्यत्वे चानित्यताभ्युपेया ते च अन्ये अन्ये च भवन्ति। अन्यथा तत्र नवोत्पादव्ययौ नापेक्षिकाविति न्यूनं एवं सल्लक्षणं स्यादिति षष्ठः।
[३९] अर्थ-तथा कहेता तेमज वली सर्व द्रव्य तथा पर्याय ते अगुरुलघुधर्मे संयुक्त होय द्रव्यने प्रदेशे अगुरुलघु अनंतो छे ते अगुरुलघु समयें समयें प्रदेशें तथा पर्यायें कोइक वारें वृद्धि पामे कोइक वारें घटी जाय; ते वधुघटु थवो छ छ प्रकारे छ। १ अनंतभाग हानि, २ असंख्यातभाग हानि, ३ संख्यातभाग हानि, ४ संख्यातगुण हानि, ५ असंख्यातगुण हानि, ६ अनंतगुण हानि, ए छ प्रकारें हानि तथा १ अनंतभाग वृद्धि, २ असंख्यातभाग वृद्धि, ३ संख्यातभाग वृद्धि, ४ संख्यातगुण वृद्धि, ५ असंख्यातगुण वृद्धि, ६ अनंतगुण वृद्धि। एछ प्रकारनी वृद्धि ते सर्व द्रव्यना सर्व प्रदेशे सर्व पर्यायमां थाय। एक प्रदेशमा कोइक समयें वधे छे कोइक समयें घटे छे। जेम परमाणुमां वर्णादिक वधे घटे छे तेम अगुरुलघुपणो पण वधे घटे छ। हानिनो व्यय छे तो वृद्धिनो उत्पाद छ। अथवा वृद्धिनो व्यय छे तो हानिनो उत्पाद छे, पण अगुरुलघु ध्रुवनो ध्रुव छ। एम सर्व द्रव्यने विषे जाणवो।
तिहां तत्त्वार्थटीकामां आकाश द्रव्यना अधिकारे का छे ते लखियें छैयें। जिहां अलोकाकाशमध्ये अवगाहक जीव पुद्गलादिक द्रव्य नथी तिहां पण अगुरुलघुपर्यायवंतपणो अवश्य छे, ते अगुरुलघुनी अनित्यता अवश्य अंगीकारे छे। अने ते अगुरुलघु ते पर्यायें तथा प्रदेशें अन्य अन्य कहेता बीजो बीजो थाय छे, एटले पूर्व समयें अगुरुलघुनो व्यय अने बीजे समये नवा अगुरुलघुनो उत्पाद छे। जो ए रीते नवो उत्पाद व्यय गवेषिये नही तो अलोकाकाशनें विषे सल्लक्षण न्यून कहेता ओछो पडे, जे उत्पादव्ययध्रुवता संयुक्त ते सत् कहिये अने जे द्रव्य होय ते सत्पणा संयुक्तज होय। माटे अगुरुलघु- परिणमन सर्व द्रव्यमां, सर्व पर्यायमां, सर्व प्रदेशमा छ। ए अगुरुलघुनो उत्पादव्यय कह्यो। ए छठ्ठो अधिकार थयो।
[४०] तथा भगवतीटीकायाम्। तथा च अस्तिपर्यायतः सामर्थ्यरूपा विशेषपर्यायास्ते चानन्तगुणास्ते प्रतिसमयं निमित्तभेदेन परावत्तिरूपाः। तत्र पूर्वविशेषपर्यायाणां नाशः अभिनवविशेषपर्यायाणाम् उत्पादपर्यायवत्त्वे ध्रुवत्वं इत्यादि सर्वत्र ज्ञेयमिति सप्तमः।
[४०] अर्थ- तेमज वली अस्तिपर्यायथी विशेष पर्याय जे सामर्थ्यरूप ते अनंतगुणा छ। ए भगवती सूत्रनी टीका मध्ये कह्यो छ। जे अस्ति पर्याय ते ज्ञानादि गुणना अविभागरूप पर्याय छ। जे पर्यायमां सर्व ज्ञेय जाणवानं सामर्थ्य छे ते विशेष पर्याय छ। तथा महाभाष्ये-यावन्तो ज्ञेयास्तावन्तो ज्ञानपर्यायाः। ए सामर्थ्यपर्याय गवेष्या छे, ए सामर्थ्यपर्याय ते ज्ञेयनें निमित्ते छे, ते ज्ञेय तो अनेक उपजे छे ने अनेक विणशे छे, तेवारें विशेष पर्याय पण पलटे छे ते प्रतिसमयें निमित्त भेदनी परावृत्ति पलटवेथी पूर्व विशेष पर्याय नाश थाय तथा अभिनव विशेष पर्यायनो उपजवो छे अने पर्यायनी अस्तिता ध्रुव छे, एम गुणपर्यायनो उत्पादव्ययध्रुवपणो ते सातमो छ। ए अस्तिनास्तिस्वभाव वखाण्या।
[४१] नित्यताऽभावे निरन्वयता कार्यस्य भवति कारणाभावता च भवति। अनित्यताया अभावे ज्ञानकतादिशक्तेरभावोऽर्थक्रियासम्भवः।