Book Title: Syadvada Pushpakalika
Author(s): Charitranandi,
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 194
________________ १६० स्वाद्वादपुष्पकलिका स्वरूप प्रथम भेद कह्यो । [३६] तथा च सर्वेषां द्रव्याणां पारिणामिकत्वं पूर्वपर्यांयव्ययो नवपर्यायोत्पादः एवमप्युत्पादव्ययी, द्रव्यत्वेन ध्रुवत्वमिति द्वितीयः। प्रतिद्रव्यं स्वकार्यकारणपरिणमनपरावृत्तिगुणप्रवृत्तिरूपा परिणतिः अनन्ता अतीता एका वर्तमाना अन्या अनागता योग्यतारूपा । ता वर्तमाना अतीता भवन्ति अनागता वर्तमाना भवन्ति शेषा अनागता कार्ययोग्यतासन्नतां लभन्ते इत्येवं रूपावुत्पादव्ययौ गुणत्वेन ध्रुवत्वमिति तृतीयः । अत्र केचित् कालापेक्षया परप्रत्ययत्वं वदन्ति, तदसत्, कालस्य पञ्चास्तिकायपर्यायत्वेनैवागमे उक्तत्वादियं परिणतिः स्वकालत्वेन वर्तनात् स प्रत्यक्ष एव तथा कालस्य भिन्नद्रव्यत्वेऽपि कालस्य कारणता, अतीतानागतवर्तमानभवनं त जीवादिद्रव्यस्यैव परिणतिरिति ॥ [३६] अर्थः-सर्व धर्म छे ते परिणामिक भावे छे। तिहां पूर्व पर्यायनो व्यय अने नवा पर्यायनो उत्पाद समय सम द्रव्यपणो ध्रुव छे ए बीजो भेद सर्व द्रव्यने विषे स्व कहेता पोतानुं कारण परिणमन परावृत्ति कहेता पलटणपणे गुणनी प्रवृत्तिरूप परिणमन छे, ते परिणति अनंत अनंत जातिनी अतीतकाले थइ छे अने अनंती जातिनी एक वर्तमान काले छे, अने बीजी अनागत योग्यतारूपपणे अनंती छे, ते वर्तमान परिणति ते अतीत थाय छे, एटले ते परिणतिमध्ये वर्तमानपणानो व्यव अने अतीतपणानो उत्पाद तथा परिणतिपणे ध्रुव छे। अने अनागतपरिणति ते वर्तमान थाय छे, तिहां अनागतपणानो व्यय, वर्तमानपणानो उत्पाद अने छतिपणे ध्रुव अने अनागत कार्य योग् दूर हता ते आसन्न कहता नजीकपणो पामे, एटले दूरतानो व्यय अने नजीकतानो उत्पाद तथा अतीतमध्ये दूरतानो उत्पाद अने नजीकतानो व्यय, ए रीतें सर्व द्रव्यने विषे अतीत वर्तमान तथा अनागतपणे परिणति छे, ते परिणमेज छे। ए द्रव्यने विषे स्वकालरूप परिणमन छे, ए उत्पाद व्ययनो त्रीजो भेद जाणवो। इहां केटलाक कालनी अपेक्षा लेइने परप्रत्ययपणो कहे छे ते खोटो छे, कारण के कालद्रव्य जे छे, ते पंचास्तिकायनो पर्याय छे, अने परिणतितो द्रव्यनो स्वधर्म छे, माटे काल ते स्वकालरूप वस्तुनो परिणाम तेनो भेद छे, अथवा कालने भिन्न द्रव्य मानियें तो पण काल ते कारणपणे छे, अने अतीत, अनागत वर्तमानरूप परिणति तेतो जीवादिक द्रव्यनो धर्म छे ते माटे ए उत्पादव्यय पण स्वरूपज छे । ए जो भेद थयो । [३७] तथा च सिद्धात्मनि केवलज्ञानस्य यथार्थज्ञेचज्ञायकत्वाद् यथा ज्ञेया धर्मादिपदार्थाः तथा घटापटादिरूपा वा परिणमन्ति तथैव ज्ञाने भासनाद् यस्मिन् समये घटस्य प्रतिभासः समयान्तरे। घटध्वंसे कपालादिप्रतिभासः तदा ज्ञाने घटाप्रतिभासध्वंसः कपालप्रतिभासस्योत्पादः ज्ञानरूपत्वेन ध्रुवत्वमिति । तथा धर्मास्तिकाये यस्मिन् समये सङ्ख्येयपरमाणूनां चलनसहकारिता अन्यसमये असङ्ख्येयानाम् एवं सङ्ख्येयत्वसहकारिताव्ययो ऽसङ्ख्येयानन्तसहकारितोत्पादश्चलनसहकारित्वेन ध्रुवत्वम् । एवमधर्मादिष्वपि ज्ञेयम् एवं सर्वगुणप्रवृत्तिष्विति चतुर्थः । ३७) अर्थ: तथा कहेता तेमज वली सिद्धात्माने विषे केवलज्ञान गुणनी संपूर्ण प्रगटता छे ते यथार्थ जे कालें जे ज्ञेय जेम परिणमे ते कालें तेमज जाणे एहवो ज्ञेयनो ज्ञायक ते केवलज्ञान छे, जेम धर्मादि द्रव्य तथा घटपटादि ज्ञेय पदार्थ जे रीते परिणमे ते रीतेज केवलज्ञान जाणे, ते जे समये घटज्ञान हतुं ते समयांतरे घट ध्वंस थये कपालनुं ज्ञान थाय, तेवारें घटप्रतिभासनो ध्वंस, कपाल प्रतिभा उत्पाद, अने ज्ञाननो ध्रुवपणो एम दर्शनादि सर्व गुणनो प्रवर्तन जाणवो। तथा धर्मास्तिकायने विषे जे समये संख्यात परमाणुने चलन सहकारिपणो हतो, फरी समयांतरे असंख्यात परमाणुने चलनसहकारीपणो करे, तेवारें संख्याता परमाणु चलनसहकारतानो व्यय अने असंख्येव परमाणुने चलनसहकारतानो उत्पाद अने चलनसहकारीपणे ध्रुव छे। एमज अधर्मास्तिकायादिकने विषे पण सर्व गुणनी प्रवृत्ति थाय छे। ए रीते द्रव्यने विषे अनंता गुणनी प्रवृत्ति छे। इहां कोइ पुछशे जे धर्मास्तिकाय मध्ये अनंता जीव तथा अनंता परमाणु ने चलणसहकारी थाय एटलो चलनसहकारी छे, तो थोडा जीव अने थोडा परमाणुनें चलणसहकार करतां बीजो गुण सौ अणप्रवर्त्यो रह्यो ? एम कहे तेने उत्तर के निरावरण जे द्रव्य छे तेनो गुण अप्रवर्त्यो रहेज नही अने जीव पुद्गल जे आवी पहोता तेने सहकारें सर्व चलन सहकारी गुणना पर्याय ते प्रवर्ते छे, अलोकाकाशमध्ये जो अवगाहक जीव पुगल नथी तोपण अवगाहक दान गुण तो प्रवर्ते ज छे। तेम धर्मास्तिकायादिकमां जीव पुल

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