Book Title: Syadvada Pushpakalika
Author(s): Charitranandi,
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 182
________________ १४८ स्याद्वादपुष्पकलिका वा परिणतिये परिणमे ते सत् कहेता छतिवन्त द्रव्य जाणवो, एटले ए लक्षण ते द्रव्यास्तिकनय तथा पर्यायास्तिकनय ए बे भेला लइने कर्यो छ। जे ध्रुवपणो ते द्रव्यास्तिकधर्म ग्रह्यो छे अने उत्पादव्यय ते पर्यायास्तिकधर्म ग्रह्यो छे। ते माटे ए लक्षण संपूर्ण छे, ए तत्त्वार्थकारकर्नु वाक्य छ। ___तथा वली बीजं लक्षण तत्त्वार्थमां ज कह्यं छे। एक द्रव्यमां बधामा स्वकार्यगुणे वर्तमान ते गुण अने पर्याय ते गुण- कारणभूत द्रव्यन भिन्न भिन्न कार्यपणे परिणमे द्रव्यगुण ए बेहुने स्वाश्रयीपणे परिणमन ते बे छे जेमां ते द्रव्य कहिये। एटले गुण तथा पर्यायवंत ते द्रव्य कहियें। ते द्रव्य एकना बे खंड थायज नही, ए मूल द्रव्य- लक्षण छे अने जे घणा परमाणुना खंधने द्रव्य मान्यो छे ते उपचारें जाणवो। जेनी परिणति त्रण कालमध्ये ते रूपने तजे नही ते द्रव्य पोतानी मूल जात त्यजे नही। जेने अगुरुलघु, षड्गुणहानिवृद्धिरूप लक्षण चक्र एकठो फिरे ते एक द्रव्य, अने जेने जूदो फिरे ते भिन्न द्रव्य कहिये। एटले धर्म, अधर्म, आकाश ए एक द्रव्य छे, अने जीव असंख्यातप्रदेशरूप एक अखंड द्रव्य छ। एवा जीव सर्वलोकमध्ये अनंता छ। ते जीव सिद्धमां वधे छे अने संसारीपणामां ओछा थाय छे, पण सर्व संख्यामां घटता वधता नथी। तथा पुद्गल परमाणु एक आकाश प्रदेश प्रमाण एक द्रव्य छ। तेवा परमाणु सर्व जीवथी तथा सर्व जीवना प्रदेशथी पण अनंतगुणा द्रव्य छ। स्कंधपणे अथवा छुटा परमाणुपणे वधे तथा घटी जाय पण परमाणुपुद्गलपणे जे संख्या छे तेमां वधता घटता नथी ए निश्चयनयथी लक्षण का। हवे व्यवहार नयथी लक्षण कहे छ। अर्थ-जे द्रव्य तेनी जे क्रिया कहेता प्रवृत्ति तेने करें ते द्रव्य कहिये। तेमां जीवनी शुद्ध क्रिया ते ज्ञानादिक गुणनी प्रवृत्ति, जेम सकल ज्ञेय जाणवा माटे ज्ञानविभागनी प्रवृत्ति एम सर्व गुण- जे कार्य जेम ज्ञानगुण, कार्य विशेष धर्मनुं जाणवू तथा दर्शनगुण- कार्य सकलसामान्यस्वभावनो बोध, अने चारित्रगुणर्ने कार्य ते स्वरूपy रमवू इत्यादि। अने धर्मास्तिकायचं कार्य गतिगुणे परिणम्या जे जीव तथा पद्गल तेने चालवाने सहकारी थाय। एम सर्व द्रव्यनी समजण जोइ लेवी। ए लक्षण सर्व द्रव्यना जे गण छे ते सर्वना स्वकार्यानयायी प्रवृत्ति तेने अर्थक्रिया कहेवी। हवे ते छ द्रव्य छे १ धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय, ३ आकाशास्तिकाय, ४ पुद्गलास्तिकाय, ५ जीवास्तिकाय, ६ काला ए छ द्रव्य जाणवा। एथी वधारे पदार्थ कोइ नथी। जे नैयायिकादिक सोल पदार्थ कहे छे ते मृषा छे, कारणके ते प्रमाणने भिन्नपदार्थ कहे छे ते तो ज्ञान छे, ते आत्मामां प्रमेयनो गुण छे ते गुणी जे आत्मा ते मध्ये रह्यो छे तेने भिन्न पदार्थ केम कहिये? बीजा प्रयोजन सिद्धान्तादिक ते सर्व जीव द्रव्यनी प्रवृत्ति छे ते माटे भिन्नपदार्थ कहेवाय नही। तथा वैशेषिक १ द्रव्य, २ गुण, ३ कर्म, ४ सामान्य, ५ विशेष, ६ समवाय, ७ अभाव ए सात पदार्थ कहे छ। पण तेने कहियें जे गुण ते तो द्रव्यमांज रह्या छे तो तेने भिन्नपदार्थ करी कहेवू ते केम घटे? अने कर्म ते द्रव्यनुं कार्य छ। तथा सामान्य अने विशेष ए बे तो द्रव्य मध्ये परिणमन छ। वली समवाय ते कारणतारूप द्रव्य, प्रवर्तन छे अने अभाव तो अछताने कहेवाय ते अछताने पदार्थ कहेवू घटतुं नथी ते माटे वैशेषिकमत पण मृषा छ। ते मध्ये द्रव्य नव कहे छ। १ पृथ्वी, २ आप, ३ तेज, ४ वायु, ५ आकाश, ६ काल, ७ दिक्, ८ आत्मा, ९ मन ए नव द्रव्य कहे छे, तेने उत्तर जे पृथ्वी, अप, तेज, वायु ए तो आत्मा छे पण कर्मयोगें शरीर भेदें नाम पड्या छे, अने दिशा तो आकाशमांज मिली गइ छे, तथा मन ते आत्माने संसारीपणाना उपयोग प्रवर्तनानो द्वार छे तेने भिन्न द्रव्य केम कहिये? वली वेदांती सांख्य ते एक आत्मा अद्वैतपणे एकज द्रव्य माने छे, तेनी पण भूल छे, केमके जे शरीर छे ते तो रूपी छे अने पुद्गल द्रव्यानां खंध छे ते केम एक थाय? तथा आत्मा अने शरीरनो आधार ते आकाश छे ते सर्व प्रसिद्ध छे ते जूदो मान्या विना केम चाले? ते माटे अद्वैतपणो रह्यो नही। अने बौद्धदर्शन ते समय समय नवा नवापणे १ आकाश, २ काल, ३ जीव, ४ पुद्गल ए चार द्रव्य माने छे। तेने पुछीयें जे जीव, पुद्गल एकज क्षेत्रे केम रहेता नथी? ते तो चलादि भाव पामे छे माटे तेना अपेक्षाकारणरूप १ धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय ए बे द्रव्य पण मानवा जोइये। तथा केटलाक संसारस्थितिनो कर्ता एक परमेश्वरने माने छे, ते पण मृषा छ। जे निर्मल रागद्वेषरहित एवो परमेश्वर ते परना सुखदुःखनो कर्ता केम थाय? वली कोइक इच्छा वलगाडे छे, ते तो अधुराने छे, पुराने केम होय?

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