Book Title: Syadvada Pushpakalika
Author(s): Charitranandi,
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 191
________________ अष्टमं परिशिष्टम् १५७ २६] अर्थ-हवे बीजो भांगो कहे छ। जे एक जीवनुं स्वरूप उपयोगमां आण्यं छे ते जीवने विषे, अन्य जे सिद्ध संसारी जीव छे ते सर्वना गुणपर्याय अस्तित्वादि प्रमुख सर्व धर्मनी नास्ति छे, अने अजीव द्रव्य तथा तेना जडतादिक सर्व धर्मनी नास्ति छ। जेम अग्निमां दाहकपणो छे तेनी पासे बीजो अग्निनो कणियो छे, ते पण दाहक छे; पण ते दाहकपणो भिन्न छे, एटले ते कणीयानो दाहकपणो ते अग्निमां नथी अने ते अग्निनो दाहकपणो ते कणीयामां नथी। तेमज एक जीवमां ज्ञानादिक गुण छे ते बीजामां नथी अने बीजा जीवमां जे ज्ञानादिक गुण छे ते तेमां नथी। बाकी सरिखा छे। ते माटे जाणवादिक कार्य सरिखा करे तो पण सर्वमां पोतपोताना गुण छे, पण कोइ द्रव्यना गुण कोइ द्रव्यमा आवता नथी। ते माटे स्वजाति अन्यद्रव्यपणो, अन्यगुणपणो तथा अन्यधर्मपणो ते सर्वनी नास्ति छ। एमज गुणमां पण सर्व अन्य द्रव्यादिकनी नास्ति छे, तथा पर्यायना अविभागमां पण स्वजाति अविभागकार्यता कारणतानी नास्ति छ। ते माटे परद्रव्यपणो, परक्षेत्रपणो, परकालपणो, परभावपणो एनी नास्ति छ। एवो नास्तिपणो पण तेमांज रह्यो छे, ते माटे स्यात् नास्तिपणो ए भांगो पण तेमांज छ। एम एकज मात्र नास्तिपणो को थके अस्तिपणो तथा एक कालपणो पण छे तथा जीवमां जडता गुणनी नास्ति छे, एटले जडतानी नास्ति ते जीवमांज रही छे। इत्यादिक अनंता धर्मनी सापेक्षता माटे स्यात् पदें बोलतां सर्व धर्मनो भासन थयो एटले सत्यता थाय ते माटे स्याद नास्ति ए बीजो भांगो कह्यो। [२७] केषाञ्चिद्धर्माणां वचनगोचरत्वेन तेन स्यादवक्तव्य इति तृतीयो भङ्गः। अवक्तव्यधर्मसापेक्षार्थं स्यात्पदग्रहणम्। _ [२७] अर्थ- हवे त्रीजो भांगो कहे छ। जे वस्तु होय तेमां केटलाक धर्म एवा छे जे वचने करी कहेवाता नथी ते अवक्तव्य छ। ते केवलीने ज्ञानमां जणाय पण वचने करी ते पण कही शके नही। ते माटे तेवा धर्मनी अपेक्षायें वस्तु अवक्तव्य छे, एटले अवक्तव्य कहेतां थकां वक्तव्यनी ना थइ, पण केटलाक धर्म वस्तु मध्ये वक्तव्य छे, ते जणाववा माटे स्यात्पद ग्रहण करीने स्याद अवक्तव्य एत्रीजो भांगो कह्यो। [२८] अत्र अस्तिकथनेऽसङ्ख्या नास्तिकथनेऽप्यसङ्ख्याः समया वस्तुनि, एकसमये अस्तिनास्तिस्वभावौ समकं वर्तमानौ तेन स्यादस्तिनास्तिरूपश्चतुर्थो भगः। [२८] अर्थ- हवे चोथो भांगो कहे छे, जे अस्ति एवो शब्द उच्चार करतां पण असंख्यात समय थाय तथा नास्ति ए शब्द उच्चार करतां पण असंख्यात समय थाय अने वस्तुमां तो अस्तिधर्म नास्तिधर्म ए बेहु एक समयमां छे, ते बेहु समकालें जणाववा माटे, अने जे अस्ति ते नास्ति न थाय तथा जे नास्ति ते अस्ति न थाय ते सापेक्षता माटे स्यात् अस्ति नास्ति ए चोथो भांगो जाणवो। [२९] तत्र अस्तिनास्तिभावाः सर्वे वक्तव्या एव न अवक्तव्या इति शङ्कानिवारणाय स्यादस्ति अवक्तव्य इति पञ्चमो भगः स्यान्नास्ति अवक्तव्य इति षष्ठोऽत्र वक्तव्या भावाः स्यात्पदे गृहीता अत्रास्तिभावा वक्तव्यास्तथा अवक्तव्यास्तथा नास्तिभावा वक्तव्या अवक्तव्या एकस्मिन् वस्तुनि, गुणे, पर्याये, एकसमये परिणममाना इति ज्ञापनार्थं स्यादस्तिनास्ति अवक्तव्य इति सप्तमो भगः॥ अत्र वक्तव्या भावास्ते स्यात्पदे सङ्ग्रहीता इति अस्तित्वेनास्तिधर्मा नास्तित्वेन नास्तिधर्मा युगपदुभयस्वभात्वेन वक्तुमशक्यत्वादवक्तव्यः स्यात्पदे च अस्त्यादिनामेव नित्यानित्याद्यनेकान्तसङ्ग्राहकम्(ग्रहः)। [२९] अर्थ- हवे पांचमो तथा छठ्ठो भांगो कहे छ। तिहां स्याद् अवक्तव्य एम कहेवाथी द्रव्य ते मूळधर्मे एकलो अवक्तव्य थयो ते संदेह निवारवा कह्यो जे स्याद् अस्ति अवक्तव्य। वस्तुमां अनंता अस्तिधर्म छे पण वचने अगोचर छे, अने अनंता धर्म वचनगोचर पण छे, तेनी सापेक्षता माटे स्यात्पदयुक्त करीयें एटले स्याद् अस्ति अवक्तव्य ए पांचमो भांगो जाणवो। एमज पांचमानी रीते स्याद् नास्ति अवक्तव्य ए छठ्ठो भागो जाणवो। हवे सातमो भांगो कहे छ। इहां अस्तिभावपणो वक्तव्य छे तेमज नास्तिभाव पण वक्तव्य छे, अने अवक्तव्य पण छ। ए सर्व धर्म एक समयमां एक वस्तुमध्ये तथा एक गुणमध्ये तथा एक पर्याय मध्ये समकालें परिणमे छे, ते जणाववा माटे अस्तिनास्ति अवक्तव्यः ए सातमो भांगो। __इहां अस्ति ते नास्ति न थाय अने नास्ति ते अस्ति न थाय तथा वक्तव्य ते अवक्तव्य न थाय अने अवक्तव्य ते वक्तव्य न थाय ते जणाववाने अर्थे स्यात्पद ग्रह्यो छे। इहां अस्तिपणे जे भाव छे ते अस्तिधर्म अने नास्तिपणे जे भाव छे ते नास्तिपणे ग्रह्या छे, बेहु समकाले छे ते माटे एक समय वक्तव्य कहेता कहेवामां अशक्य छे, असमर्थ छे, तेथी अवक्तव्य कहेता अगोचरपणे छे अने जे स्यात्पद छे ते अस्तिधर्म नास्तिधर्म अवक्तव्य धर्मनो नित्यपणो अनित्यपणो प्रमुख अनेकांतनो संग्रह करे छ। जे अस्तिधर्म छे ते

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