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अष्टमं परिशिष्टम्
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तेमज अजीव अनंता द्रव्यभिन्नपणे; एम पुद्गलपरमाणु पण जडतारूपपणे सरिखा पण सर्व परमाणुओ जूदा द्रव्य छ। जे कालें पुछीयें ते कालें एटलाने एटला छे कोइ काले घटे नही, तेम नवो वधे नहीं। ए सर्व द्रव्यथी भेद जाणवो।
__ हवे क्षेत्रांश:-क्षेत्रथी भेद ते जे विस्तरे तो जूदो क्षेत्र अवगाहीने रहे, जेम जीवादि द्रव्यना प्रदेश अवगाहनाधर्मे जूदा छे पण द्रव्यथी जूदा पडे नही, संलग्नपणे रहे। गुणपर्याय सर्वप्रदेशें अनंता छे ते गुणपर्याय एक प्रदेश मूकी बीजा प्रदेशमां जाय नही, पर्यायविभाग एकनो अने प्रदेशनो अवगाह सरिखा छे पण ते पर्याय अनंता भिन्न छे, अने जे अनंता पर्याय मलीने एक कार्य करे ते कार्यने गुण कहे छ। श्रीवीतराग सर्वज्ञ एम कहे छे ए क्षेत्रथी भेद छ।
एकवस्तुमा उत्पादव्ययरूप पर्याय पलटवानुं मान ते समय कहियें। जेटलो उत्पाद व्यय तथा अगुरुलघुनी हानिवृद्धिने परिणमतानुं मान ते समय कहिये। अने तेथी बीजी परिणमनता थइ ते बीजो समय, एम जे अनंती अतीतप्रवृत्ति थइ ते वर्तमानप्रवृत्तिनी परंपरारूप जाणवी। अने आगामिक थाशे ते कार्यरूपे योग्यतारूप जाणवी। अतीतकालनो तथा अनागत कालनो कोइ ढिगलो नथी, अने पिंडरूप पंचास्तिकायनु वर्तना रूप जे परिणमन तेनुं मान ते काल कहिये। तेने समयभेद ते त्रीजो कालरूप भेद कहिये। ते जे पर्याय भिन्न भिन्न कार्य करे ते कार्यभेदे भिन्नपणो छे, ते माटे चोथो भावथी भेद कहिये।
हवे द्रव्यनुं लक्षण कहे छ। ते क्षेत्र काल अने भावना जे भेद ते सर्व- एकठा मिलिने पिंडपणे एकाधारपणे समुदायीपणे रहेवू ते द्रव्य कहियें।
[४] तत्रैकस्मिन् द्रव्ये प्रतिप्रदेशे स्वस्वएककार्यकरणसामर्थ्यरूपा अनन्ता अविभागरूपपर्यायास्तेषां समुदायो गुणः। भिन्नकार्यकरणे सामर्थ्यरूपा भिन्नगुणस्य पर्यायाः। एवं गुणा अप्यनन्ताः प्रतिगुणं प्रतिदेशं पर्याया अविभागरूपा: अनन्तास्तुल्याः प्राय इति। ते चास्तिरूपा: प्रतिवस्तुन्यनन्तास्ततोऽनन्तगुणाः सामर्थ्यपर्यायाः।
[४] अर्थ-हवे गुण- लक्षण कहे छ। तिहां गुणनामाश्रयो द्रव्यमिति वचनात्, एकद्रव्यने विषे स्वस्व कहेता पोतपोतानो एक जाणवा प्रमुख कार्य करवानुं जेने सामर्थ्य छे एवा अनंता सूक्ष्म जेनो अविभाग कहेता बीजो छेद न थाय एवा विभागनो जे समुदाय तेने गुण कहिये। जेम एक दोरडो सो तांतणानो कर्यो ते सो तांतणा तो अविभागपणे छता पर्याय छे। ते दोरडाथी अनेक कार्य थाय, अनेक वस्तु बंधाय, अने अनेकने आधार थाय अनेक वेटण थाय तेने सामर्थ्य पर्याय कहिये। छतिरूप जे पर्याय ते तो वस्तुरूप छे अने सामर्थ्यपर्याय तो प्रवर्तनरूप-कार्यरूप छे, ते छतिपर्यायनो समुदाय तेने गुण कहिये। छतिपर्यायना अविभाग ते योगस्थान समयस्थानमां कह्योज छे अने भिन्न कहेता जुदो कार्य करवानुं जेमां सामर्थ्य होय एवा अविभागरूप आत्मप्रदेशे वर्तता पर्याय ते भिन्न कहेता जुदा गुणना पर्याय जाणवा। जेम जे अविभाग परिणामालंबनरूप कार्य सामर्थ्यरूप तेनो समुदाय ते वीर्यगुण, एमज जाणवारूप सामर्थ्य छे जेमां, एहवा जे अविभागपर्याय छे तेनो समुदाय ते ज्ञानगुणा तेवा गुण एकद्रव्यने विषे अनंता छ। ते एकगुणना प्रदेशे प्रदेशे पर्याय अविभागरूप अनंता छे अने सर्व प्रदेशे सरिखा छ।
तथा पंचास्तिकाय मध्ये एक अगुरुलघु पर्यायनो भेद तरतम छ। तथा पुद्गलपरमाणुमध्ये कालभेदे अथवा द्रव्यभेदें वर्णादिकना पर्यायनो तरतमयोग ते थोडा घणापणो छ। ते पर्यायअस्तिरूप छे, सदा छता छ। कोइ पर्याय द्रव्यांतरमा जातो नथी, प्रदेशांतरमां पण जातो नथी, ते छतिपर्यायथी सामर्थ्यपर्याय अनंतगुणा जाणवा। ते कार्यरूप छे। तथा च महाभाष्ये
यावन्तो ज्ञेयास्तावन्त एव ज्ञानपर्यायाः ते च अस्तिरूपाः प्रतिवस्तुनि अनन्तास्ततोऽप्यनन्तगणाः सामर्थ्यपर्यायाः।
[५] तत्र द्रव्यलक्षणमुत्पादव्ययध्रुवयुक्तं सल्लक्षणम्। द्रव्यम् एतद् द्रव्यास्तिकपर्यायास्तिकोभयनयापेक्षया लक्षणम्। गुणपर्यायवद् द्रव्यम् एतत् पर्यायनयापेक्षया। अर्थक्रियाकारि द्रव्यम् एतल्लक्षणं स्वस्वशक्तिधर्मापेक्षया। धर्मास्तिकायः,अधर्मास्तिकायः,आकाशास्तिकायः,पुद्गलास्तिकायः,जीवास्तिकायः,कालश्चेति।
[५] अर्थ- हवे वली द्रव्य, मुख्य लक्षण कहे छे, उत्पाद कहेता नवा पर्याय- उपजq व्यय कहेता पूर्व पर्याय- विणसवू अने ध्रुव कहेता नित्यपणो ए तीन परिणमनपणे सर्वदा जे परिणमे तेने द्रव्य कहिये। एटले तेहिज गुण कारण-कार्य बे धर्मे समकाले परिणमे छ। कारण विना कार्य थाय ज नहीं अने कार्य करे नहीं ते कारण पण समजवू नहीं। जे उपादान कारण तेहिज कार्य थाय छ। ते कारणतानो व्यय अने कार्यतानं उपजवं समकाले थाय छ। वली कारणपणो पण समयें समयें नवो नवो छे अने कार्यपणो पण समयें समयें नवो नवो छे ते माटे कारणपणानो पण उत्पाद-व्यय छे, अने कार्यपणानो पण उत्पाद-व्यय छे, अने गुणपिंडपणे द्रव्याधारपणे ध्रुव छ। एवी