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स्याद्वादपुष्पकलिका
केवलाकाशप्रदेशव्यूहरूपः स चानन्तप्रदेशप्रमाणः।
[९] अर्थः-सर्व द्रव्यने आधारभूत अवगाह स्वभावी जे जीव तथा पुद्गलने अवगाहनानो ओठंभानो हेतु ते आकाशास्तिकाय द्रव्य कहियें। तेना प्रदेश अनंता छ। लोक तथा अलोक रूप छे, तेमां जे क्षेत्रे जीव तथा पुद्गल तथा धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय छे ते क्षेत्रने लोक कहियें, अने केवल एक लोक मात्र आकाशज जिहां छे तेने अलोक कहियें, एटले जे लोक ते जीवादि द्रव्य सहित अने जीवादिक द्रव्य जिहां नथी तेने अलोक कहियें। ते अलोकना प्रदेश अनंता छ, अवगाहक धर्मे सर्व द्रव्य एमां समाय छ।
कारणमेव तदन्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः। एकरसवर्णगन्धो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गी च॥
[१०] पूरणगलनस्वभाव: पुद्गलास्तिकाय: स च परमाणुरूपः। ते च लोके अनन्ता एकरूपाः परमाणवोऽनन्ता द्व्यणुका अप्यनन्ता: त्र्यणुका अप्यनन्ता एवं सङ्ख्याताणुकास्कन्धा अप्यनन्ता असङ्ख्याताणुकस्कन्धा अप्यनन्ता एकैकस्मिन् आकाशप्रदेशे एवं सर्वलोकेऽपि ज्ञेयम्। एवं चत्वारोऽस्तिकाया अचेतनाः।।
[१०] अर्थः- हवे पुद्गल द्रव्य, स्वरूप लखियें छैयें। जे पूरण कहेता पूराये, वर्णादिगुणे वधे, गली जाय, खरी जाय, वर्णादि गुण घटि जाय एवो जेमां स्वभाव छे ते पुद्गलास्तिकाय कहियें। ते मूल द्रव्य परमाणुरूप छे ते परमाणु- लक्षण कहे छ। व्यणुकादिक जेटला स्कंध छे ते सर्व- अत्यंत कहेता मूल कारण परमाणु छे एटले सर्व स्कंध- परमाणु कारण छे पण ए परमाणुनु कारण कोइ नथी, कोइY नीपजाव्यो थयो नथी अने कोइने मिलवे पण थयो नथी।सूक्ष्म छ। एक आकाशप्रदेशनी अवगाहना तुल्य एक परमाणु छे तो पण ते एक आकाशप्रदेशमां अनंत परमाणु समाय छे पण परमाणु मध्ये बीजं द्रव्य कोइ समाय नही माटे परमाणु द्रव्य सूक्ष्म छे अने नित्य छ। जेटलुं परमाणु द्रव्य छे ते खंधादिक अनेकपणे परिणमे, पण परमाणु द्रव्य कोइ विणसी जाय नही एवं परमाणु द्रव्य छ। ते एक परमाणुमा एक रस होय, एक वर्ण होय, एक गंध होय अने लुखो-चिकणो, टाढो-उन्हो, ए चार स्पर्श मांहेला गमे ते बे फरस होय, एवं एक परमाणु द्रव्य
__ इहां कोइ पुछे जे ते परमाणु देखातो नथी तो केवी रीते मनाय? तेने उत्तर-जे घट,पट,शरीरादिक कार्य देखाय छे, ग्रहवाय छे, ते रूपी छे तो एहना संबंधY कारण परमाणु सूक्ष्म छे माटे इंद्रियज्ञाने ग्रहेवातो नथी, परंतु रूपी छे केमके अरूपीथी रूपी कार्य थाय नही ते माटेज परमाणु रूपी छे। तेथी ए स्कंध पण रूपी थया छ। अने आकाश प्रदेश अरूपी छे तो तेनो अनंत प्रदेशी स्कंध पण अरूपी छे एम धार। ते परमाणुना द्वणुकादिक स्कंध अनंता छे, तथा छुटा परमाणु ते पण अनंता छे ते वली खंधमां मिले छे तो बीजा खंधमांहेथी छुटा थाय छे एम खंध विखरी जाय ने परमाणु थाय।
___ तेनी वर्गणा अठ्यावीस प्रकारनी छे। ते अठ्यावीस भेद कम्मपयडीथी जाणवा। एम एकला परमाणु ते पण अनंता, तथा बे मिलीने खंध पाम्या तेवा खंध पण अनंता, एमज संख्याताणुकना खंध पण अनंता, तेमज असंख्यात परमाणु मिलि खंध थाय ते पण अनंता, तथा अनंत परमाणु मल्या खंध थाय तेवा खंध पण अनंता, ते ए जातिना खंध ते एक आकाश प्रदेश अवगाहे। आकाशांश अवगाहे एम असंख्याता प्रदेश अवगाहे छे पण एक वर्गणानी अवगाहना अंगुलने असंख्यातमें भागे अवगाहे, वधति अवगाहे नही, अने अनंती वर्गणा मिले अंगुल, हाथ, गाउ, योजनादिकने माने अवगाहना थाय।
__ एम ए १ धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्तिकाय ३ आकाशास्तिकाय ४ पुद्गलास्तिकाय ए चारे द्रव्य अचेतन छे, अजीव छे, जाणपणा रहित छ।
[११] चेतनालक्षणो जीवः, चेतना च ज्ञानदर्शनोपयोगी अनन्तपर्यायपरिणामिककर्तृत्वभोक्तत्वादिलक्षणो जीवास्तिकायः।
[११] अर्थ- हवे जीव द्रव्यनुं स्वरूप कहे छ। चेतना जे बोध शक्ति छे लक्षण जेनुं ते जीव कहियें। जे पोताना परिणमन तथा परनी परिणमन सर्वने जाणे ते जीव। तथा सर्व द्रव्य ते अनंता सामान्य स्वभाव अने अनंता विशेष स्वभाववंत छ। तेमां सर्व द्रव्यना अनंता विशेष धर्मर्नु अवबोधक ते ज्ञान गुण कहियें, तथा सामान्यविशेष स्वभाववंत वस्तुने विर्षे जे सामान्य स्वभाव- अवबोधक ते दर्शन गुण कहिये। ते ज्ञानदर्शनोपयोगी जे अनंतपर्याय तेनो परिणामी कर्ताभोक्तादिक अनंती शक्तिनुं पात्र ते जीव जाणवो। उक्तं च
नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो अ, एवं जीवस्स लक्खणं॥(न.प.५)
चेतनालक्षण ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख, वीर्यादिक अनंत गुण- पात्र, स्वस्वरूपभोगी, तथा अनवच्छिन्न जे स्वावस्था प्रगटी तेनो भोक्ता, अनंता स्वगुणनी जे स्वस्वकार्यशक्ति तेनो कर्ता, भोक्ता, परभावनो अकर्ता, अभोक्ता, स्वक्षेत्रव्यापी अनंती आत्मसत्तानो ग्राहक, व्यापक, रमण करनारो, तेने जीव जाणवो।