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प्रथम लक्षण द्वार
इस ग्रंथ का प्रधान विषय द्रव्य और तत्संबंध गुण और पर्याय है। प्रथम लक्षण द्वार में द्रव्य, गुण अनेक पर्याय के लक्षण की मीमांसा की गई है। इस के कोई उत्तर भेद नहीं है।
दूसरा गुण द्वार
गुण द्रव्य के सदा सहभावि पर्यायों को गुण कहते है । गुण दो प्रकार के होते है सामान्य गुण और विशेष गुण। सामान्य गुण तेरह है। विशेष गुण अठारह है।
सामान्य गुण
द्रव्यत्व, अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रदेशत्व, प्रमेयत्व, सत्त्व, अगुरुलघुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व, सक्रियत्व, अक्रियत्व यह तेरह सामान्य गुण है।
उनकी व्याख्या इस प्रकार है
१) अपने अपने प्रदेश समुदाय के साथ अखंड रहकर जो अपने स्वभाव-विभाव, गुण और पर्याय सेव होता है और द्रवित होगा वह द्रव्य का स्वभाव द्रव्यत्व है।
२) अस्तिका भाव अस्तित्व है, अर्थात् सद्रूपता।
३) जो सामान्यविशेष स्वरूप है वह वस्तु है। वस्तु का स्वभाव वस्तुत्व है।
४) प्रदेश का स्वभाव प्रदेशत्व है। अविभागि (जिसके दो भेद नहीं हो सकते ऐसे) पुद्गल के परमाणु द्वारा रोका गया क्षेत्र भाग प्रदेश है।
५) प्रमाण से स्व और पररूप का ज्ञान होता है। प्रमाण से ज्ञेय वस्तु को प्रमेय कहते है। प्रमेय के भाव को प्रमेयत्व कहते है।
६) उत्पाद, व्यय और ध्रुवता से युक्त होकर जो अपने गुणपर्याय से व्याप्त होता है वह सत् है। ऐसे सत् के भाव को सत्त्व कहते है।
७) अगुरुलघु के भाव को अगुरुलघुत्व कहते है। जो वाणी का विषय नहीं बनते ऐसे सूक्ष्म प्रतिक्षण वर्तमान में अगुरुलघु कहते है। यहां पर अगुरुलघु भाव जिनागम के प्रमाणसे ही अभ्युगम्य है । (जिनागम के अलावा अगुरुलघु भाव का ग्राहक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। क्योंकि - अगुरुलघुभाव इतना सूक्ष्म है कि वह वाणी का विषय नहीं बनता।
८) चेतना के भाव को चेतनत्व कहते है। चेतनत्व यह भाव अनुभव से ज्ञेय है। देवसेन कृत आलाप पद्धति में यह बात कही है - चैतन्य अनुभूति है। अनुभूति क्रियारूप है। और क्रिया हमेशा मनवचन काया में अन्वित रहती है। ९) अचेतन के भाव को अचेतनत्व कहते है। अचैतन्य का अर्थ है - अनुभव का अभाव।
१०) मूर्त के भाव को मूर्तत्व कहते है । मूर्तत्व का अर्थ है - रूप-रस-गंध-स्पर्शादि मान् होना।
११) अमूर्त के भाव को अमूर्तत्व कहते है। अमूर्तत्व का अर्थ है - रूपादि रहित होना। अरूपी-अरसीअगंधी-अस्पर्शवत् होना।
१२) सक्रिय के भाव को सक्रियत्व कहते है। सक्रियत्व का अर्थ है - क्रिया युक्त होना ।
१३) अक्रिय के स्वभाव को अक्रियत्व कहते है। अक्रियत्व का अर्थ - क्रियारहित होना। इसप्रकार