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सुरसुंदरीचरित्रं प्रथम-परिच्छेद
शुभ भागवती दीक्षा स्वीकार करने की प्रतिज्ञा के समय केशलुंचन आरंभ करनेवाले जिनके कानों के समीप देवेन्द्र की प्रार्थना पर रक्खा हुआ अत्यंत कुटिल केशकलाप अंतःकरण में प्रवेश न पा सकने के कारण बाहर ही ठहरने की अभ्यर्थना करनेवाला मानो कामदेव का दूत न हो इस प्रकार शोभता है, सुगठित दोनों कंधों पर लटकते हुए केशकलाप से जिनकी सुनहली मूर्ति ऊपर काजल युक्त दीपशिखा की तरह शोभती है, जिनको प्रणाम करने से विपुल विघ्नों का समूह नष्ट हो जाता है, उन ऋषभ देव भगवान के चरण कमल को सबसे पहले प्रयत्नपूर्वक नमस्कार करता हूँ। जिनके जन्म के समय में एकसाथ अमरेंद्र पांच रूपों को प्राप्त होते हैं और रागादि शत्रु (पंचत्व) मरण को प्राप्त होते हैं उन अजितनाथादि तीर्थङ्करों को मैं वंदना करता हूँ।
जन्म समय के बाद सुमेरु पर्वत के शिखर पर अभिषेक के समय इन्द्र के मन में उत्पन्न कुविकल्प को दूर करने में प्रयत्नशील जिनके अनन्य सामर्थ्य को देखकर रागादि शत्रुओं की सेना की तरह पर्वत समुद्र सहित पृथ्वी अत्यंत कम्पित हुई, नमस्कार करने के समय तीनों लोक के प्रतिबिम्बित होने पर जिनका निर्मल