________________ [ 25 प्रघाती. कर्मों के प्रभाव में संसार के परिभ्रमण का अन्त हो जाता है, प्रसिद्धपर्याय समाप्त होजाता है, सिद्ध पर्याय की उत्पत्ति होने पर आत्मा सिद्धात्मा के रूप में यहाँ से असंख्य कोटानुकोटि योजन दूर, लोक-संसार के अन्त में स्थित सिद्धशिला के उपरितन भाग पर उत्पन्न. हो जाते हैं। तब वे सिद्धात्मा के अतिरिक्त मुक्तात्मा, निरञ्जन, निराकार आदि विशेषणों के अधिकारी बन जाते हैं। शास्त्रों में शिवप्राप्ति, ब्रह्मप्राप्ति, निर्वाणप्राप्ती, मोक्षप्राप्ति प्रादि शब्दों के जो उल्लेख मिलते हैं, वे सभी शब्द पर्यायवाची हैं। सिद्धात्मा हो जाने पर उन्हें पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है अर्थात् वे अजन्मा बन जाते हैं / जन्म नहीं तो जरा और मरण भी नहीं, मौर जरा-मरण नहीं तो उससे सम्बन्धित संसार नहीं, संसार नहीं तो आधि, व्याधि और उपाधि से संस्सृष्ट अन्य वेदनाएं, अशान्ति, दुःख, असन्तोष, हर्ष-शोकखैद-ग्लानि आदि का लेश मात्र सञ्चार भी नहीं। नमस्कार-सूत्र के द्वितीय पद में ऐसे ही सिद्धों को नमस्कार किया गया है और उन्हें द्वितीय परमेष्ठी के रूप में स्थान प्राप्त है। . वैसे स्तुति के पात्र तो पाँचों परमेष्ठी हैं। किन्तु उनमें भी धर्ममार्ग के अाद्य प्रकाशंक अरिहंत ही होते हैं। जगत् को सुख-शान्ति और कल्याण का मार्ग बतानेवाले भी ये ही हैं। प्रजा के सोधे उपकारक भी ये ही हैं / अतः सभी अरिहंत अथवा अरिहंतावस्था की स्तुति की जाए यह उचित और स्वाभाविक है। ___ यहाँ यह भी विचारणीय है कि एक मनुष्य सामान्य-स्थिति से - उठकर अरिहंत जैसी परमात्मा की स्थिति में कैसे पहुँचता होगा? इस सम्बन्ध में शास्त्रों के आधार पर उनके जीवन-विकास को अति संक्षेप में समझ लें। - अखिल विश्व के प्राणिमात्र में से कुछ प्रात्माएँ ऐसी विशिष्ट