________________ [ 23 से चार पद्य तक की रचना स्तुति कहलाती है जबकि 'स्तोत्रं पुनर्बहुश्लोकमानम्' (पंचा०) के अनुसार स्तोत्र अनेक श्लोकवाला होता है / प्रस्तुत 'स्तोत्रावली' में प्रत्येक स्तोत्र के श्लोकों की संख्या भी 4 से अधिक है, अतः इन्हें स्तोत्र की संज्ञा दी गई है। 'उत्तराध्ययनसूत्र' में यह भी कहा गया है कि-'स्तुतिस्तू/भूय कथनम्' अर्थात् 'स्तुति खड़े होकर बोली जाती है जबकि स्तोत्रस्तवादि बैठकर बोले जाते हैं। . स्तुतियों के प्रकार पद्यसंख्या एवं वर्ण्यविषय के आधार पर ही बताये गये हैं जबकि रचना-सौष्ठव, उक्तिप्रकार, वचनवैचित्र्य आदि की दृष्टि से तो ये अनेकविध होती हैं / उदाहरण के लिये१-वर्णविन्यासात्मक-एकाक्षरी से लेकर अनेकाक्षरी तक। २-भाषावैविध्य-पद्धतिरूप-प्राकृत, संस्कृत, देशी, अपभ्रंश प्रादि से मिश्रित। ३-चमत्कृतिमूलक-विविध चमत्कारपूर्ण शास्त्रीय पद्धतियों से . . रचित। ४-कल्पनामूलक-वाचकों के मन को मानन्द के प्राकाश में विचरण करानेवाली कल्पना से संयुक्त / ५-विविधार्थमूलक-एक अर्थ से लेकर दो, बार, दस, सो अर्थों से युक्त। ६-काव्यकौतुकपूर्ण-अनेक विषयगर्भ, चित्रबन्धादि तथा प्रहेलिका, * समस्या-पूर्ति प्रादि काव्यकौतुकों से परिपूर्ण / इनके अतिरिक्त भी और कई प्रकार प्राप्त होते हैं, जिनकी विशेष चर्चा यहाँ प्रसङ्गोपात्त नहीं है।