Book Title: Sthanang Sutra Dipika Vrutti
Author(s): Vimalharsh Gani, Mitranandvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीस्थानाङ्ग
सूत्र
दीपिका वृत्तिः ।
॥२५९॥
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चत्तारि घुणा पं० त० तयक्खाते छल्लिक्खाते कट्ठक्खाते सारक्खाते, एवामेव चत्तारि भिक्खागा पं० त०-तयक्खायसमाणे जाव सारक्खायसमाणे, तयक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स सारक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते, सारक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स तयक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते, छल्लिक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स कक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते, कट्टक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स छल्लिक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते (सू० २४३) ।
एतत्सूत्र त्वेवं, त्वचं - बाह्यवल्कं खादतीति त्वकखादः एवं शेषा अपि नवर' 'छल्लि'त्ति अभ्यन्तर वल्क, काष्ठं-प्रतीतं, सारः - काष्ठमध्यमिति दृष्टान्तः, 'एवामेवे' त्याद्युपनयसूत्र', 'एवामेवे 'ति भिक्षणशीला भिक्षणधर्माणो भिक्षणे साधवो वा भिक्षाकाः, त्वक्रखादेन घुणेन समानोऽत्यन्तं सन्तोषितया आयामाम्लादिप्रान्ताहारभक्षकत्वात् त्वक्रखादसमानः, एवं छल्लीखादसमानोऽलेपाहारकत्वात् काष्ठखादसमानो निर्विकृतिकाहारतया सारखादसमानः सर्वकामगुणाहारत्वादिति, एतेषां चतुर्णामपि भिक्षाकाणां तपोविशेषाभिधानसूत्र' - 'तयखाए' इत्यादि सुगम, नवरमयं भावार्थ:-त्वकल्पासाराहाराभ्यवहर्तुर्निरभिष्वङ्गत्वात् कर्म्मभेदमङ्गीकृत्य वज्रसारं तपो भवतीत्यतोऽपदिश्यते - 'सारक्खायसमाणे तवेत्ति, सारखादघुणस्य सारखादत्वादेव समर्थत्वाद्वज्रतुण्डत्वाच्चेति, सारखादसमानस्योक्तलक्षणस्य साभिष्वङ्गतया त्वक्रखादसमान कर्म्मसारभेदं प्रत्यसमर्थ तपः स्यात् त्वक्खादकघुणस्य हि त्वक्खादकत्वादेव सारभेदनं प्रत्यसमर्थत्वादिति, तथा छल्लीखादघुणसमानस्य भिक्षाकस्य त्वक्रखादघुणसमानापेक्षया किञ्चिद्विशिष्टभोजत्वेन किञ्चित्साभिष्वङ्गत्वात् सारखाद काष्ठखादघुण समानापेक्षया त्वसारभोजित्वेन निरभिष्वङ्गत्वाच्च कर्मभेद प्रति काष्ठखादघुणसमानं तपः प्रज्ञप्तं नातितीव्रं सारखादघुणवत्, नाप्यतिमन्दादि, त्वक्छल्ली
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सू० २४३ ।
॥२५९॥
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