Book Title: Sthanang Sutra Dipika Vrutti
Author(s): Vimalharsh Gani, Mitranandvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 368
________________ श्रीस्थानाङ्ग सूत्र दीपिका वृत्तिः । ॥३५८ ॥ Jain Education Intern sat देवाधिकारवन्तमादुःखशय्यासूत्रात् सूत्रप्रपञ्चमाह - 'चही त्यादि, सुगमश्राय, नवरं लोकोद्योतश्चतुर्ष्वपि स्थानेषु देवागमात् जन्मादित्रये तु स्वरूपेणापि, एवमिति यथा लोकान्धकारं तथा देवान्धकारमपि चतुर्भिः स्थानैः, देवस्थानेष्वपि ह्यर्हदादिव्यवच्छेदकाले वस्तुमाहात्म्यात् क्षणमन्धकारं भवति, एवं देवोद्योतोऽर्हतां जन्मादिष्विति, देवसन्निपातो - देवसमवाय एवमेव देवोत्कलिका - देवलहरिः, एवमेव 'देवकहकह' त्ति - देवप्रमोद कलकलः, एवमेव देवे - न्द्रा मनुष्यलोकमागच्छेयुः अर्हतां जन्मादिष्विति यथा त्रिस्थानके प्रथमोद्देशके तथा देवेन्द्रागमनादीनि लोकान्तिकसूत्रावसानानि वाच्यानि, केवलमिह परिनिर्वाणमहिमास्विति चतुर्थमिति । पूर्वमर्हतां जन्मादिव्यतिकरेण देवागम उक्तोऽधुनाऽर्हतामेव प्रवचनार्थे दुःस्थितस्य साधोः दुःखशय्या इतरस्येतरा भवन्तीति सूत्रद्वयेनाह— चत्तारि दुहसिज्जाओ पं० त० तत्थ खलु इमा पढमा दुहसेज्जा त०-से ण मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियां पब्वइए णिग्गंथे पावयणे संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे णिग्गंथ पावण णो सद्दह णो पत्तियइ णो रोपइ, णिग्गंथ पावयण' असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोपमाणे मण उच्चावयं णियच्छ विणिग्धायमाचज्जइ पढमा दुहसेज्जा १, अहावरा दोचा दुहसेज्जा से ण मुंडे भवित्ता अगाराओ जाव पव्वइसपण लाभेण णो तुस्सइ परलाभ आसति पीछेइ पत्थेइ अभिलसइ परस्स लाभ आसापमाणे जाव अभिलसमाणे मण उच्चावयं नियच्छइ विणिग्धायमावज्जइ दोच्चा दुहसेज्जा २, अहावरा तच्चा दुहसेज्जा से ण मुंडे भविता जाव पव्व दिव्वे माणुस्सर कामभोगे आसाएइ जाव अभिलसह दिव्वमाणुस्सर कामभोगे आसमा जाव अभिलसमाणे मण उच्चावय नियच्छर विणिग्धायमावज्जइ तच्चा दुहसेज्जा ३, अहावरा चउत्था दुहसेज्जा For Private & Personal Use Only सू० ३२४-३२५ । ॥३५८॥ www.jainelibrary.org

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