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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८
को पकड़ नहीं पाते। बौद्ध दर्शन विश्व की उन प्राचीनतम दर्शनों में से है जिसकी सार्वकालिक प्रासंगिकता है। आवश्यकता है उसमें अन्तर्निहित विचारों के वस्तवर्च से परिचित होने की। विसुद्धिमग्ग इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है।
प्राचीन भारतीय दर्शनों के साथ समस्या तब उत्पन्न होती है जब उनके सिद्धान्तों एवं नियमों का उपयोग हम वर्तमान की समस्याओं के निराकरणार्थ करते हैं। उनके दार्शनिक कथनों पर उनके अनुयायियों द्वारा अनेक प्रकार से अलग-अलग समस्याओं के आलोक में अलग-अलग व्याख्याएँ प्रस्तुत की जाती हैं। कभी-कभी तो कई व्याख्याकार एक ही कथन की परस्पर प्रतिकूल व्याख्या उपस्थित कर देते हैं, तो कहीं एक ही शास्त्र में एक कथन दूसरे को खंडित करता-सा प्रतीत होता है, यथाधम्मपद में एक स्थल पर कहा गया है 'अत्ता ही अत्तनो नाथो' अर्थात् 'आत्मा ही आत्मा का स्वामी है, तो दूसरे स्थल पर कहा गया है 'सब्बे संखारा अनिच्चा ही यदा पाय पस्सति' अर्थात् ‘समस्त वस्तुएँ अनात्म हैं।' ऐसी अवस्था में इनकी समन्वयात्मक व्याख्या एक समस्या बन जाती है। इन व्याख्याकारों के समक्ष दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन्होंने न तो बुद्ध को देखा है और न सना है। शास्त्र विशेष या कथन विशेष के प्रतिपादन के समय बुद्ध के मन में कौन से भाव थे? क्या समस्या थी? इनका ज्ञान इन्हें नहीं है। बुद्ध के वे शिष्य जिन्होंने उन्हें सुना या जिनके लिए ये उपदेश किये गये वे आज नहीं हैं। अब समस्या है कि किस प्रकार उनके अर्थ को ग्रहण करें? अगर ग्रहण करें तो कौन-सा अर्थ किस प्रकार बुद्ध के उपदेशों का सही मार्ग-दर्शन करेगा? यहीं पर अर्थघटन का महत्त्व अनुभूत होता है। अतः धुतंगनिद्देस में प्रयुक्त अर्थघटन के उपकरणों की विवेचना के पूर्व अर्थघटन की संक्षिप्त विवेचना अपेक्षित है।
अर्थघटन जिसे अंग्रेजी में Hermeneutics कहते हैं, वस्तुतः ग्रीक शब्द Hermenuin से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है 'व्याख्या करना'। इसकी संज्ञा शब्द Hermenia है जिसका अर्थ है 'व्याख्या' या 'अर्थ-निरूपण'। मोटे तौर पर अर्थघटन का तात्पर्य शास्त्रों में वर्णित वाक्यों या सूत्रों का अर्थ-निरूपण एवं व्याख्या करना है। अर्थ-निरूपण में तीन प्रकार के कार्य होते हैं- (१) शास्त्रों के कथन को व्यक्त करना एवं उन पर बल देना, (२) अनुवाद करना, और (३) उनकी व्याख्या करना। इन तीनों कार्यों में सूत्रों के अर्थ की समझ अपेक्षित है। वस्तुतः 'भाषा किसी तथ्य या कथ्य के समझने एवं समझाने का सार्वभौम माध्यम है। समझ या अवबोध का
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