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पूर्व - मध्य कालीन जैन ग्रंथों में शिक्षा के तत्त्व 4. ७५
को शिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। जैन ग्रंथों में कहा गया है कि स्त्री अशिक्षित रहने पर कुमार्ग का अनुसरण कर सकती है। समराइच्चकहा" में उल्लेखित पुरन्दर भट्ट की पत्नी नर्मदा और जिनदत्त की पत्नी बन्धुलता शिक्षा के अभाव में ही अशिष्ट एवं असंस्कृत हो गई थी।
मध्य कालीन समाज में सह-शिक्षा के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं। आठवीं शताब्दी के भवभूति के 'मालती माधव' नाटक से सह-शिक्षा के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। डॉ० अरुण प्रताप सिंह के अनुसार जैन समाज में भी स्त्रियों की शिक्षा की उपर्युक्त व्यवस्था रही होगी। सह-शिक्षा का सबसे आकर्षक परिणाम यह रहा कि नारियाँ अत्यन्त निर्भीक बन गईं। कुछ विदुषी जैन भिक्षुणियों का उल्लेख बौद्ध अट्ठकथा में मिलता है जो शास्त्रार्थ करती थीं। 'भद्राकुण्डल केशा' एवं 'नंदुत्तरा' ऐसी ही जैन भिक्षुणी थीं। 'भद्राकुण्डलकेशा' का बौद्ध भिक्षु 'सारिपुत्र' के साथ तथा 'नंदुत्तरा' का स्थविर 'महामौद्गल्यायन' के साथ शास्त्रार्थ हुआ था। २०
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इससे यह स्पष्ट होता है कि पूर्व मध्यकालीन जैन ग्रंथों में शिक्षा-सम्बन्धी तथ्य प्रचुर मात्रा हैं जो तत्कालीन शिक्षा-व्यवस्था पर प्रकाश डालते हैं। तत्कालीन कुछ जैन आचार्य अत्यन्त स्मरणीय हैं, जैसे अभयदेवसूरि, वादिराजसूरि, हेमचन्द्र सूरि, जिनसेन इत्यादि ।
सन्दर्भ :
१. तत्त्वार्थसूत्र, पं० सुखलाल संघवी, १९७६ ई०, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, १०/२.
२. विजय कुमार, जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन - एक तुलनात्मक अध्ययन, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, २००३, पृ० ३.
३. शास्त्री, डॉ० नेमिचन्द्र, आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, गणेश प्रसाद वर्णी ग्रंथमाला, वाराणसी, १९६८ ई०, पृ० २५८.
४. आदिपुराण - १६/१११.
५. प्रबन्धकोश (सम्पादक- जिनविजय जी ) भाग १, पृ० २८.
६.
कुवलयमाला (सम्पादक - डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये), ई०, सिंघी जैन शास्त्र विद्यापीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई ।
७. पूर्वोक्त पृ० २१.
८. पूर्वोक्त पृ० २१ - २९.
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१९५८
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