________________
अष्टपाहुड एवं प्रवचनसार के परिप्रेक्ष्य में योग्य-अयोग्य साधु विवेचन : ८१
करता९, जो मुनि संयम से सहित है तथा आरम्भ और परिग्रह से विरत है वही सुर, असुर और मनुष्यों से युक्त लोक में वन्दनीय है।
इस प्रसङ्ग में आगे वे कहते हैं कि योग्य साधु योग्य आचार्य के समीप शास्त्र ज्ञानार्जन हेतु या समाधिमरण हेतु जाता है, किन्तु वहाँ पहुँचने पर उसे ज्ञात हो कि आचार्य अयोग्य या भ्रष्ट है तो उसी समय साधु को आचार्य के संसर्ग का त्याग कर देना चाहिए तथा इसी प्रकार शिक्षार्जन या समाधिधारण निमित्त आये परसंघस्थ साधु को भ्रष्ट जानकर आचार्य को छेदोपस्थापना या संघ से निष्कासित कर देना चाहिए। अन्यथा जिनाज्ञा उल्लंघन का दोष लगने से आचार्य स्वयं छेद योग्य हो जाते हैं। इस प्रकार साधु के दो भेदों के अन्तर्गत योग्य साधु का विवेचन किया गया है। अध्ययन सम्बन्धी योग्यायोग्य साधु
आचार्य वट्टकेर के अनुसार द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव की शुद्धिपूर्वक ही शास्त्राध्ययन करना चाहिए।२२ द्रव्य अर्थात् शरीरशुद्धि, क्षेत्र अर्थात् अध्ययनस्थल से सौ हाथ पर्यन्त भूमि का शुद्ध होना। संध्याकाल, मेघगर्जन, विद्युत्पात और उत्पाद के समय अध्ययन करने से कालदोष लगता है।२३
सूत्रज्ञान, संयम और तप में निपुण श्रमण योग्य है तथा सूत्र, संयम और तप से युक्त भी साधु यदि श्रद्धान रहित है तो वह आचार्य कुन्दकुन्द के मत में श्रमण नहीं है।२५
वस्तुत: वन्दना करने योग्य साधु को दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप तथा विनय से युक्त होना चाहिये।६
उपर्युक्त से भिन्न जो साधु स्वयं गुणहीन होकर अन्य गुणधारियों से स्वविनय की अपेक्षा करते हैं वे परभव में लूले-लँगड़े और मूक होते हैं।७ असंयमी और भावसंयमरहित - दोनों ही प्रकार के साधु वन्दना के अयोग्य हैं।२८ भले ही शरीर कामदेव तुल्य हो, उत्तमकुलोत्पन्न तथा उत्कृष्ट जात्युत्पन्न हुआ हो, किन्तु रत्नत्रय गुणरहित साधु अवंदनीय ही है।२९
ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही अष्टपाहुड़कार कहते हैं कि धर्म का मूल दर्शन है तथा वह अवश्यम्भावी है।३० दर्शन से च्युत का संसार-समुद्र विशाल है, किन्तु जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र तीनों से भ्रष्ट है, वह अधमश्रेष्ठ है।३१ बाह्य योग्य लक्षणों से युक्त जीव श्रद्धान रहित है तो बाह्य समस्त गुणों का होना व्यर्थ है। किन्तु कदाचित् आगमज्ञान के लोभ से द्रव्यादि शुद्धियों का उल्लंघन करता है तो असमाधि, अस्वाध्याय, कलह, रोग तथा वियोग को नियमतः प्राप्त होता है।२२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org