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१९२ : श्रमण वर्ष ५९, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २००८
प्रो० सरस्वती ने गाँवों का अध्ययन करके लोगों को उस ओर आकृष्ट करने का प्रयास किया है जिधर समाज का समुचित कल्याण अवस्थित है। इस प्रयास से गाँधी जी के सपनों का भारत या गाँवों का भारत अपने सही रूप में साकार हो सकता है। शहर तो गाँवों का शोषक होता है, जो गाँवों के विकास में बहुत बड़ा बाधक है। विद्वान् लेखक की इस छोटी-सी रचना जो विविधताओं से परिपूर्ण है को देखकर निम्नलिखित पंक्तियां याद आती हैं.
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शत सइआ के दोहरे अरु नाविक के तीर
देखन के छोटन लगे घाव करे गम्भीर
इस पुस्तक को लिखकर प्रो० सरस्वती ने भारतीय समाज का बहुत बड़ा उपकार किया है जिसके लिए वे तथा उनके सहयोगीगण साधुवादार्ह हैं। पुस्तक की छपाई साफ एवं सुन्दर है । पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा पूर्व निदेशक
सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा
पूर्व उपाचार्य, दर्शन विभाग,
म० गां० काशी विद्यापीठ, वाराणसी
जीवन का उत्कर्ष (जीवन दर्शन की बारह भावनाएँ), लेखक श्री चित्रभानुजी, अनु० - डॉ० प्रतिभा जैन, मूल्य - २०० /- रुपये, पृष्ठ- १५६, प्रकाशक - पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी - २२१००५; दिव्य जीवन सोसाइटी, ई-१, क्विन्स व्यू, २८/३० बालकेश्वर रोड, मुम्बई - ४००००६, करुणा अन्तर्राष्ट्रीय, ७०, शम्बुदास स्ट्रीट, चेन्नई - ६००००१
अहिंसा सद्भावना एवं ध्यान-योग रूप त्रिवेणी के संगम योगाचार्य श्री चित्रभानुजी द्वारा आलेखित Twelve Facets of Reality : The Jaina Path of Freedom का हिन्दी रूपान्तरण 'जीवन का उत्कर्ष' में जैन दर्शन की उन बारह भावनाओं का सुन्दर विश्लेषण है, जो धर्म के प्रत्येक श्रद्धालु के हृदय में अनुप्राणित है।
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जैन धर्म में भावना को 'भवनाशिनी' कहा गया है। भावना संसार सागर से तिरने का उपक्रम है। भावना से ही व्यक्ति मुक्ति की ओर अग्रसर होता है । भावना से ही अशुभ लेश्याएँ शुभ लेश्याओं में परिवर्तित होती हैं। इस पुस्तक में यह दिग्दर्शित
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