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भरत : एक शब्द-यात्रा :
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प्रथम चक्रवर्ती के रूप में हुआ है और उनका सारा जीवन पिता से प्राप्त रिक्थ के अनुरूप है। वे निवृत्ति धर्म के अनुगामी हैं और यही स्वाभाविक निवृत्ति धर्म है, किन्तु इसमें कहीं-कहीं चारित्र-लेखकों द्वारा प्रवृत्ति धर्म का रंग भी चढ़ा दिया गया है।
ब्राह्मणीय पौराणिक साहित्य में ऋषभ-पुत्र भरत का उल्लेख 'जड़ भरत' नामक एक राजर्षि महायोगी के रूप में हुआ है। वहाँ उनके तीन जन्मों की कथा वर्णित है। राजा भरत प्रजापालक, दयालु एवं धार्मिक प्रवृत्ति के थे। इनकी प्रजा सुखी थी। इन्होंने अनेक यज्ञों के द्वारा यज्ञपुरुष की आराधना की थी। ये परम भागवत (भगवद् भक्त) थे। इन्होंने भक्तिमार्ग का अवलम्बन लेते हुए अनेक वर्षों तक प्रजाहित साधन में रत रहकर राज्य किया। अन्त में राज्य छोड़कर ये तप हेतु पुलहाश्रम चले गए थे।
आश्रम में रहते हए इन्हें एक हरिण शावक के प्रति मोह हो गया था और मृत्यु के समय भी इनका चित्त उसी में लगा रहने के कारण इन्हें अगले जन्म में मृग-योनि में जन्म लेना पड़ा। तत्पश्चात् तृतीय जन्म में अंगिरा कुल के एक ब्राह्मण के यहाँ इनका जन्म हुआ। इन्हें पूर्व जन्मों का ज्ञान था। अत: ये संसार की आसक्ति से बचने के लिए जड़वत् (अबोध, मूढ़ जैसा) व्यवहार करते हुए मत्तचित्त होकर ब्रह्म-चिन्तन में निमग्न रहते थे। इसीलिए इन्हें 'जड़ भरत' की संज्ञा मिली। एक बार लोगों ने इन्हें पागल समझकर सौवीर राजा की पालकी में लगा दिया। मार्ग में इनका राजा से संवाद हुआ अर्थात् ज्ञानपूर्ण बातें की तो राजा इन्हें तत्त्वज्ञानी जानकर पालकी से उतर इनसे क्षमायाचना की। अन्त में इन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इनके त्यागमय महान् चरित्र का अनुकरण किसी के द्वारा संभव न हो सका।८
श्रीमद्भागवत् में (पंचम स्कन्द के द्वितीय अध्याय से चतुर्दश अध्याय तक) जहाँ ऋषभदेव का जीवन-चरित्र विस्तार से वर्णित है, वहीं उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत के यश का भी विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। अन्य पुराणों में भी उनका उल्लेख हुआ है। इतिहास में भरत को आर्य-संस्कृति का पोषक कहा गया है। वे परम दयालु, आत्मयोगी, परम भागवत् भक्त एवं मोक्षमार्गी-श्रेष्ठ थे।
वैदिकधारा के ग्रंथों में प्रजापति ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत को ही यद्यपि इस देश के नाम भारतवर्ष का मूलाधार माना गया है, किन्तु कुछ ऐसे विरोधात्मक उल्लेख भी मिलते हैं जिनके संदर्भ से कतिपय विद्वानों ने दौष्यन्ति भरत के नाम को मूलाधार स्वीकार किया है। परन्तु प्राचीन साहित्य से इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती। उसके अनुसार तो ऋषभ-पुत्र भरत 'भारत' नाम के आधार सिद्ध होते हैं। 'अग्नि पुराण' (१०/१०-११); 'मार्कण्डेय पुराण' (प०/३९-४२); 'नारद पुराण' (पूर्वखंड, अध्याय ४८); 'लिङ्ग पुराण' (४७/१९-२३); 'स्कन्द पुराण' (माहेश्वर खंड कौमार
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