________________
५८ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर- दिसम्बर २००८
सन्त और महापुरुष, जिन्होंने अहिंसा और विश्वशांति के लिए विभिन्न पक्षों का अध्ययन, मनन किया है, वे ही विश्व को शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। '३
१३
भगवान् महावीर ने कहा है- मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणई । अर्थात् विश्व के सभी प्राणियों से मेरी मैत्री है, मेरा किसी से भी बैर नहीं है। वस्तुतः जिसे तू मारना चाहता है वह तू ही है, जिसे तू शासित करना चाहता है वह तू ही है, जिसे तू परिताप देना चाहता है वह तू ही है । अत: सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्वों को न मारना चाहिए, न अन्य व्यक्ति के द्वारा मरवाना चाहिए, न बलात् पकड़ना चाहिए, न परिताप देना चाहिए और न उन पर प्राणापहार उपद्रव ही करना चाहिए। जीव के प्रति अन्याय की जितनी भी प्रवृत्तियां हैं सभी हिंसा के अन्तर्गत आती हैं। आज समाज में बढ़ती हिंसा की प्रवृत्तियां चाहे सामाजिक क्षेत्र में हो या धार्मिक क्षेत्र में या फिर आर्थिक क्षेत्र में सब के पीछे हिंसा तो जीव की ही होती है। आचार्य तुलसी ने कहा है कि युद्ध चाहे जैसा भी हो वह हिंसा का परिणाम है, उसे अहिंसा की संज्ञा नहीं दी जा सकती। यद्यपि युद्ध अहिंसा नहीं है तथापि उसमें अहिंसा के लिए पर्याप्त स्थान है। जैसे आक्रांता न बनें, निरपराध को न मारें, कम से कम नागरिकों को तो न मारें, अपाहिजों के प्रति क्रूर व्यवहार न करें। इसी प्रकार क्रयविक्रय, व्यापार और आदान-प्रदान समाज के लिए आवश्यक है। यह अहिंसामय हैऐसा नहीं कहा जा सकता । किन्तु इसमें अन्याय और शोषण न हो, कम तोल-माप न हो, मिलावट न करे, विश्वासघात न करे, झूठा दस्तावेज न बनाए ऐसा तो संभव है ही। यही व्यापार के क्षेत्र में अहिंसा है।" जैन धर्म आचार, विचार और अर्थ जो मानव जीवन के तीन महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं, में अहिंसा की बात करता है ।
जैन धर्म की समाज-व्यवस्था विश्वप्रेम की नींव पर ही अवलम्बित है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत केवल मनुष्य के बीच भाईचारे का सम्बन्ध ही निहित नहीं है बल्कि संसार के पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े आदि समस्त प्राणियों के साथ भ्रातृत्व भाव समाहित है। तभी तो कहा गया है
सत्वेषु मैत्री गुणीषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वमं । मध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ सदा ममात्मा विदधातु देव ।।
प्राणियों के प्रति प्रेम ही एक ऐसा सिद्धान्त है जो व्यक्ति और समाज के बीच अधिकार और कर्तव्य की शृंखला स्थापित कर सकता है। आज व्यक्ति और समाज के बीच की खाईं संघर्ष और शोषण के कारण गहरी हो गई है जिसे प्रेमाचरण द्वारा ही भरा जा सकता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मानव का जीना उसका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org