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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८
कराया था। आज आवश्यकता है अहिंसा को व्यावहारिकता के धरातल पर लाने की किन्तु इसके लिए हमें दृढ़संकल्प होना होगा तभी विश्वशांति की स्थापना हो सकेगी। सन्दर्भ :
१. मिश्र, अनन्त, विश्वशान्ति और अणुव्रत, प्रका०- आत्माराम एण्ड सन्स,
कश्मीरी गेट, दिल्ली, पृ०- २१ २. चिन्तन की मनोभूमि, सम्पादक डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा, सन्मति
ज्ञानपीठ, आगरा, पृ०- २५१ ३. मिश्र, अनन्त, विश्वशान्ति और अणुव्रत, प्रका०- आत्माराम एण्ड सन्स,
कश्मीरी गेट, दिल्ली, पृ०- २२ ४. सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता,
न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिधित्तव्वा, न परियावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा, एस धम्मे सुद्धे नियये सासये। आचारांगसूत्र,
१/४/१ ५. मिश्र, अनन्त, विश्वशान्ति और अणुव्रत, प्रका०- आत्माराम एण्ड सन्स,
कश्मीरी गेट, दिल्ली, पृ०- २१
६. सामायिक पाठ,१
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