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विश्वशांति और अहिंसा : एक विश्लेषण
अधिकार है लेकिन दूसरे को जीने देना उसका कर्तव्य है । जिस दिन ये बात लोगों को समझ में आ जायेंगी समाज में शांति होगी।
मतवैभिन्यता भी समाज में अशांति का कारण है। महावीर ने कहा है कि अपनी बात या धारणा के प्रति दुराग्रह होना एकांतवाद है। यही कारण है कि हठवादिता और एकान्त दृष्टिकोण हमारे लिए अशांति और संघर्ष उत्पन्न करते हैं। इस समस्या के समाधान हेतु महावीर ने अनेकान्तवाद को प्रस्तुत किया। कहा कि किसी वस्तु को एकान्ततः 'ऐसा ही है' के स्थान पर 'ऐसा भी है' का प्रयोग करना चाहए । क्योंकि 'ही' आग्रह का द्योतक है तो 'भी' विनम्रता का । 'भी' से वक्ता की अपेक्षादृष्टि का पता चलता है।
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वर्तमान अर्थप्रधान संस्कृति जो अशांति का सबल कारण है उसे अर्थसंयम द्वारा दूर किया जा सकता है। आज व्यक्ति के पास जितनी सम्पत्ति बढ़ती जा रही है उसमें उतनी ही मात्रा में असंतोष की भावना भी बढ़ रही है । असंतोष की यह भावना ही मानव को हिंसा की ओर प्रवृत्त करती है। क्योंकि संचयवृत्ति में मानव को न्यायअन्याय का विचार नहीं रहता है। आर्थिक समानता में जैन धर्म का अपरिग्रह सिद्धान्त अहम् भूमिका निभा सकता है।
अहिंसा के बिना विश्वशांति असंभव है। आज के मर्यादाहीन एवं उच्छृंखल जीवन में समरसता एवं शांति लाने के लिए अहिंसा ही वह आधार है जिस पर परमानंद का प्रासाद खड़ा किया जा सकता है। एकमात्र अहिंसा ही है जो मानव हृद और शरीर के मध्य, बाह्य प्रकृतिचक्र और अन्तरात्मा के मध्य, स्वयं और पड़ोसी के मध्य सदभावपूर्ण सामंजस्य पैदा करके बन्धुता का रस बहा सकता है तथा समग्र चैतन्य के साथ बिना किसी भेदभाव के तादात्म्य स्थापित कर सकता है। लेकिन अहिंसा का यह प्रारूप तभी संभव है जब अहिंसा के साधनों के औचित्य को हम ध्यान में रखेंगे। जैन धर्म में प्रत्येक कार्य को संचालित करने के लिए सर्वप्रथम श्रद्धा और विश्वास पर बल दिया गया है। रत्नत्रय के रूप में जैन धर्म ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को इस रूप में प्रस्तुत किया है कि व्यक्ति इनके द्वारा अपने वैयक्तिक जीवन को सुधार कर समाज और राष्ट्र की ऐसी इकाई बन सकता है जिससे आदर्श समाज और राष्ट्र का निर्मण होगा।
अहिंसा जिसे कायरों का शस्त्र कहा जाता है, वस्तुतः वह एक ऐसी विधायक शक्ति है कि जिस कार्य को लाख परमाणुबम और हाइड्रोजन बमों के प्रयोग से सम्पन्न नहीं किया जा सकता है उस कार्य को अहिंसा द्वारा सहज ही सम्पन्न किया जा सकता है, जैसे महात्मा गाँधी ने भारतवर्ष की आजादी में अहिंसा की शक्ति से लोगों को अवगत
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