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विश्वशांति और अहिंसा : एक विश्लेषण : ५७
हिंसा होती है तब दोनों अर्थात् स्व और पर की होती है। हिंसा में क्रोध, मान, द्वेष आदि की भावना निहित होती है, जिससे व्यक्ति स्व की हिंसा करता है। वस्तुतः जिसे व्यक्ति मारना चाहता है वह कोई दूसरा नहीं बल्कि वह स्वयं ही है, क्योंकि सभी जीव समान हैं। भगवान् महावीर ने कहा है- 'एगे आया' अर्थात् आत्मा एक है, एक रूप है, एक समान है। चैतन्य के जाति, कुल, समाज, राष्ट्र, स्त्री पुरुष आदि के रूप में जितने भी भेद हैं, वे सब आरोपित भेद हैं, बाह्य निमित्तों द्वारा परिकल्पित किये गये मिथ्या भेद हैं। आत्माओं के अपने मूल स्वरूप में कोई भेद नहीं है। बैर हो, घृणा हो, दमन हो, उत्पीड़न हो सब अंततः लौटकर कर्ता के ही पास ही आते हैं, क्योंकि कृतकर्म निष्फल नहीं होते। यह ठीक उसी तरह होता है जिस तरह कुएँ में की गई ध्वनि प्रतिध्वनि के रूप में वापस होती है।
हिंसा से कभी भी शांति या समता की स्थापना नहीं हो सकती। क्या घृणा से घृणा का अन्त हो सकता है? बेशक नहीं। हम सभी जानते हैं क़ि युद्धोत्तर काल में विश्व के जिन देशों में साम्यवाद की स्थापना हुई, उन देशों में पहले खून की होली खेली गई। पूँजीपतियों के नाम पर एक बहुत बड़े वर्ग का सफाया किया गया। उन्मूलन की यह प्रक्रिया आज भी चल रही है, लेकिन यह विश्वबन्धुत्व का मार्ग नहीं है और न ही इसके द्वारा विश्वशांति स्थापना की कल्पना की जा सकती है। क्योंकि विश्वशांति तभी संभव हो सकती जब मानवीय चर्या में भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता का भी समावेश हो। युद्ध आज भी होते हैं, पर उनमें निरपराध और युद्ध से विरत प्राणियों का भेदभाव नहीं होता। प्रत्येक युद्ध के बाद यह उम्मीद की जाती है कि भविष्य में युद्ध नहीं होगा, लेकिन सत्यता यह है प्रत्येक युद्ध समाप्ति के साथ भावी युद्ध का बीजारोपण हो जाता है। कारण कि मानव में प्रतिशोध की भावना का जन्म हो जाता है। इसके लिए आवश्यकता है मनुष्य के हृदय-परिवर्तन की। इस सम्बन्ध में ११ दिसम्बर, १९५९ को अमेरिका के राष्ट्रपति जनरल आइजनहावर द्वारा भारतीय संसद में दिये गये वक्तव्य को देखा जा सकता है। उन्होंने कहा - 'मैंने एक भी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा जो युद्ध चाहता हो। ऐसी एक भी माता नहीं होगी जो अपने पुत्र को युद्ध में भेजना चाहे। सभी विश्वशांति चाहते हैं। इसके लिए निःशस्त्रीकरण आवश्यक है। किन्तु निःशस्त्रीकरण से क्या युद्ध नहीं होगा? वस्तुतः युद्ध शस्त्रों द्वारा नहीं होता। युद्ध मनुष्य करते हैं और मनुष्य लोभ से प्रभावित होते हैं। अतः युद्ध के सम्बन्ध में जब तक युद्ध की प्रवृत्ति न बदले तब तक शांति का स्थायी समाधान नहीं निकल सकेगा। स्पष्ट है आज सम्पूर्ण विश्व में राजनीतिज्ञ अहिंसक समाज के लिए सचेष्ट हैं। वे विश्व शांति का मार्ग ढढ़ रहे हैं। उन्हें यह मार्ग कौन बताएगा? इसका उत्तर है - भारत के
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