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जैन चिन्तन में संपोष्य विकास की अवधारणा :
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पद्मपुराण में मगध साम्राज्य की चर्चा मिलती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि "जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध नाम से प्रसिद्ध एक उज्ज्वल देश पुण्यात्मा मनुष्यों का निवास स्थान है, इन्द्र की नगरी के समान जान पड़ता है और उदारतापूर्ण व्यवहार से लोगों की व्यवस्था करता है।२०
इस प्रकार के वर्णन से यह परिलक्षित होता है कि राज्य में राजा का शासन प्रजा की कल्याणकारी पद्धति पर चल रहा था और वहाँ राजतन्त्र होने पर भी प्रजा के ऊपर अत्याचार न था। राजा राजनीति में धर्मनीति का सहयोग लेकर राज-व्यवस्था चलाता था। जैन परम्परा की शिक्षा से प्रभावित होकर राजा अनैतिक अथवा पापकर्म नहीं करता था। जैन परम्परा की शासन-व्यवस्था में राजा के आचरण पर बल देते हुए कहा गया है कि वह कोई ऐसा कार्य न करे सके जिससे जनता दुःखी हो, आतंकित हो। अहिंसा उस शासन-व्यवस्था का आधार था।
इस दृष्टि से जैन परम्परा की राजनीतिक व्यवस्था संपोषी मानी जा सकती है। उसमें राजा दंभी, आचारणहीन, आतंकी, कायर व अप्रजातान्त्रिक नहीं था। वह जनता का सेवक था। उसकी शक्ति जनता में निहित थी। वह जनता का पालक था शोषक नहीं। जनप्रिय सम्प्रभुता ही उसका आधार कहा जा सकता है। वह व्यवस्था गरीबों के अनुकूल, स्त्रियों के अनुकूल, प्रकृति के अनुकूल और बच्चों के अनुकूल मानी जा सकती है। अत: जैन परम्परा की शासन-व्यवस्था पूर्णरूपेण संपोषणकारी है। आर्थिक आयाम
जैन परम्परा में संपोष्य विकास के आर्थिक आयाम अहिंसात्मक अर्थतन्त्र पर निर्भर हैं, जिसमें सभी ऐसे आय के साधन अनुपयुक्त माने गये हैं जो हिंसक हैं। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति स्वार्थपूर्ति की दृष्टि से दूसरे व्यक्तियों को मन, कर्म तथा वचन से पीड़ित नहीं करता है, क्योंकि इस मार्ग द्वारा प्राप्त आय से व्यक्ति हिंसा और बदले की भावना,आतंक व संघर्ष का वातावरण और अकुलाहटपूर्ण जीवन की प्राप्ति करता है, जो स्वयं उसके अस्तित्व के लिए घातक हो सकता है। अत: जैन परम्परा की यह मान्यता है कि 'धन-धान्य मृत्यु आदि पदार्थों को आवश्यकतानुसार ही त्याग के साथ ग्रहण करना चाहिए।'२१
__ इस दृष्टि से जैन परम्परा अपरिग्रह महाव्रत के माध्यम से व्यक्ति को लालच न करने व संतोष रखने का आग्रह करता है, क्योंकि उत्तराध्ययनसूत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि जैसे-जैसे आर्थिक लाभ या विषयगत लाभ होता है, वैसे-वैसे लोभ बढ़ता है, लोभ से परिग्रह होता है, जिससे समाज में एक के पास अतिरेक लाभ
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