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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००८
उत्तरी मध्यप्रदेश में जैन धर्म : १०वीं से १३वीं शताब्दी ई० तक
( अभिलेखीय साक्ष्यों के विशेष सन्दर्भ में )
उत्तरी मध्यप्रदेश के अंतर्गत आने वाले ग्वालियर तथा चम्बल सम्भागों के आठ जिलों ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, मुरैना, भिण्ड, श्योपुर के क्षेत्र का पुरातात्त्विक साक्ष्यों की उपलब्धता के आधार पर धार्मिक दृष्टि से प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इस क्षेत्र में विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के साथ-साथ जैन धर्म से सम्बन्धित साक्ष्यों की भी प्राप्ति होती है। जैन धर्म विशेष रूप से समता, अहिंसा एवं सम्यक् संकल्प पर बल देने वाला एक प्राचीन धर्म है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ (आदिनाथ) को इस धर्म के प्रवर्तक माना जाता है। जैन धर्म के व्यवस्थित एवं सुनियोजित दार्शनिक स्वरूप का विकास २४वें तीर्थंकर भगवान् महावीर के निर्देशन में हुआ।
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यशवन्त सिंह *
पुरातात्त्विक साक्ष्यों में अभिलेखों को प्रामाणिक व ठोस आधार प्रदान करने वाले स्रोत के रूप में महत्त्व प्राप्त है । १०वीं शताब्दी ई० से १३वीं शताब्दी ई० के मध्य उत्तरी मध्यप्रदेश से प्राप्त होने वाले अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस क्षेत्र में जैन धर्म व उसके अनुयायियों की विद्यामानता की जानकारी प्राप्त होती है। इस काल के मध्य मध्यप्रदेश के उपर्युक्त क्षेत्रों में जैन धर्म में आस्था रखने वाले श्रावकों
द्वारा विभिन्न जैन धर्मायतनों का निर्माण करवाया गया जो प्रतिमाओं के आयागपट्टों (प्रतिमा के आसनों / पादपीठों), स्तम्भों, भित्तियों, शिलाओं आदि पर प्रतिष्ठाकाल तथा प्रतिष्ठा करवाने वाले श्रावकों के उत्कीर्ण नामों से स्पष्ट होता है। चेत (ग्वालियर), सिहोनियाँ (मुरैना), नरवर (शिवपुरी), पचरई (शिवपुरी), भीमपुर (शिवपुरी), गुडार 'या' गुडर (शिवपुरी), सोनागिर (दतिया), सिनावल ( दतिया), दूबकुण्ड ( श्योपुर), रदेव ( श्योपुर), ध्नेचा 'या' धनेच ( श्योपुर) बजरंगगढ़ (गुना), चन्देरी (अशोकनगर), बूढ़ी चन्देरी (अशोकनगर), कदवाहा (अशोकनगर) आदि स्थलों से प्राप्त जैन लेखों * शोध छात्र, प्रा० भा० इ०सं० एवं पुरातत्त्व अध्ययनशाला, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म०प्र० )
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