________________
जैन चिन्तन में संपोष्य विकास की अवधारणा : ४५
3. UN D.P. 1994 ( Sustanable Human development; from concept to opration, New York, P-4 .
४. उत्तराध्ययनसूत्र, १३.६.१७.
५. सूत्रकृतांगसूत्र, जिल्द - २, पृ० ३०१,
जैकोबी)
६. जैन परम्परा में वर्णित अहिंसा के साठ नामों की व्याख्या मिलती है, परन्तु सभी का उल्लेख संपोष्य विकास की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है जिन नामों को संपोष्य विकास के लिए उपयोगी माना जा सकता है वे हैं : निव्वुई (निवृत्ति), समाही (समता ), सन्ती (शान्ति), कंती (प्रसन्नता), तित्ती (तृप्ति), दया (प्राणि - रक्षा), समिद्धी (समृद्धि) विद्धि (वृद्धि), भद्धा (भद्र), विसुद्धी (विशुद्ध), पमोअ ( प्रमोद), रक्खा (रक्षा), संजम (संयम), गुत्ती (गुप्ति) जन्न (यज्ञ), वीरवाअ (विश्वास) इत्यादि । सिन्हा, बशिष्ठ नारायण, जैनधर्म में अहिंसा, सोहन लाल जैन धर्म प्रचारक समिति - गुरुबाजार, अमृतसर, १९७२, पृ० २७३.
७. दशवैकालिकसूत्र ६.८.
८. जैन, सुदर्शन लाल, उत्तराध्ययनसूत्र : एक परिशीलन, सोहन लाल जैन धर्म प्रचारक समिति, वाराणसी, १९७०, पृ० २६१.
"
९. 'नहु पाणवह अणुजाणे मुच्चेज्ज कयाइ सव्व दुक्खाण' उत्तराध्ययनसूत्र
८/८.
१०. अज्झत्य सव्वओं सव्वं दिस्स पाणे पियायए ।
नहणे पणिषो पाणे भय वेराओं उवरए । । उत्तराध्ययनसूत्र
१३/२६.
-
११. न यत्प्रमादयोगेन जीवित व्यपरोपणम |
त्रसानां स्थावराणांव तद् हिंसा व्रतं मतम ।। योगशास्त्र, सम्पा० - आचार्य हेमचन्द्र ऋषभचन्द्र जौहरी, किशन लाल जैन, दिल्ली १९६३ श्लोक२, पृ० १०.
१३. उत्तराध्ययनसूत्र २५/३३.
१४. वही, २५ / ७-८, १२/१२.
१५. वही, १४/३.
-
१२. सिन्हा, बशिष्ठ नारायण, जैनधर्म में अहिंसा, सोहन लाल जैन धर्म प्रचारक समिति - गुरूबाजार, अमृतसर, १९७२, पृ० २७३.
Jain Education International
६/७,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org