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विष्णुस्मृति
४६. कृच्छ्रादि व्रतविधान वर्णनम् : ४७६
कृच्छ्रव्रत -तीन दिन तक भोजन नहीं करना । सिरसे स्नान करना इसी तरह पर प्राजापत्य - तप्तकृच्छ्र, शीतकृच्छू, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, उदककृच्छ्र, मूल कृच्छ्र, श्रीफलकृच्छ्र, पराक, सान्तपन, महासान्तपन, अतिसान्तपन, पर्णकृच्छ्र – इनका विधान आया है ।
४७. चान्द्रायण व्रतवर्णनम् ग्रासार्थान्न निर्णय वर्णनम् : ४७७ चान्द्रायण के विधान- इसमें यति चान्द्रायण और सामान्य चान्द्रायणादि का वर्णन आया है ।
४८. अन्नदोषार्थ यवेन प्रायश्चित्तम् : ४७८
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अपने लिए यव भिगोकर उसकी तीन अंजुली पीवे उससे वेश्या का अन्न, शूद्र के अन्न का दोष हट जाता है ।
४६. मार्गशीर्ष शुक्लं कावश्युपाख्यान वर्णन, सर्वपाप निवृत्यर्थं 'वासुदेवार्चन वर्णनम् : ४७६
मार्गशीर्ष शुक्ला ११ में उपवास कर १२ में भगवान् वासुदेव का पूजन पुष्प, धूप आदि से करे । एकादशी व्रत करने से बहुत पाप नष्ट हो जाते हैं । श्रवण नक्षत्र युक्त एकादशी वा पूर्णिमा को एक वर्ष तक व्रत करने से पाप नष्ट हो जाते हैं ।
५०. ब्रह्म, गोवधादि प्रायश्चित्तार्थ वने पर्ण कुटी विधान वर्णनम् : ४८०
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व्रत का वर्णन - वन में झोपड़ी बनावे और तीन बार स्नान करे और ग्रामग्राम में भीख मांगे और घास पर सोवे तथा अपने पाप को कहता जावे । रजस्वला आदि गमन स्त्री आदि पाप नष्ट हो जाते हैं । फल के वृक्षादि, गुल्मादि काटने के पाप भी इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं ।
५१. सुरापः सर्वकर्मस्वनर्हः मद्यमांसादि निषेधं तच्च सर्व प्रायश्चित्तवर्णनम् : ४८२
सुरापान करने वाला किसी कार्य को या मातृ-पितृ श्राद्ध कर वह एक वर्ष तक कणों को खावे एवं चान्द्रायण व्रत करे । प्याज, लहसुन, वानर, खर, उष्ट्र, गोमांस के भक्षण करने पर भी वही व्रत है । द्विजातियोंको इस व्रत के पश्चात् फिर संस्कार करें । शुष्क मांस के खाने पर भी उपरोक्त
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