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१-२
शातातपस्मृति
१. अकृत प्रायश्चित्त वर्णनम् : ५६८ पाप करने पर जो प्रायश्चित्त नहीं करते हैं उनके नरक भोगने के
_वाद आगामी जन्म में पाप सूचक कुछ चिह्न होते हैं महापातक के चिह्न सात जन्म तक रहते हैं पूर्वजन्मात प्रायश्चित्त चिह्नम् उपपापतक के चिह्न पांच जन्म तक, सामान्य पापों का तीन जन्म
तक । दुष्ट कर्मों से जो रोग उत्पन्न होते हैं उनकी जप, देवा
र्चन, हवन आदि से शान्ति की जाती है पहले जन्म के किए पाप नरकभोगगति के अनन्तर बीमारी के
रूप में आते हैं उनका शमन जप, दानादि से होता है महापातकादि से होनेवाले रोग कुष्ठ, यक्ष्मा, ग्रहणी, भतिसारादि ६-७ उपपातक से श्वास, अजीणं आदि रोग पापों से होने वाले कम्प, चित्रकुष्ठ, पुण्डरीकादि रोग अति पाप से उत्पन्न होने वाले रोग अर्श आदि पापजन्य रोगों का शमन करने का उपाय
११-३२ २. कुष्ठ निवारण प्रयोग वर्णनम् : ६०१ ब्रह्म हत्या से पाण्डु कुष्ट तथा उनका प्रायश्चित्त
१-१२ सामवेदेन सर्वपाप प्रायश्चित्तम् : ६०३ गोवध प्रायश्चित्त का विधान, सामवेद पारायण,
१३-१६ हन्तुक-फलानाशायोपापवर्णनम् : ६०५ पितृ-हत्या मात्र हत्या से रोग और उसका विधान
२०-२५ बहिन हत्या के पाप
२६-३५ स्त्रीघाती एवं राज घाती
३६-४२ भिन्न भिन्न पशुओं के वध का भिन्न भिन्न प्रायश्चित्त
४३-५७
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