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अमावा
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वृहद् पाराशर स्मृति
४७ कृष्णसार मुग स्वभावतः स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करते हैं। हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य देश को पावन देश बताया है और अन्य देश जहां से नदियां साक्षात् समुद्रगामिनी हैं उन्हें भी तीर्थस्थान बताया है। इसमें पराशरजी ने अपने पुत्र व्यास को द्विज कर्भ और षट्कर्म वर्ण धर्म की प्रशंसा और गो बृषभ का पालन पशुपालन विधि
षट्कर्म वर्णधर्माश्च प्रशंसा गोवृषस्य च । अबोह-बाझो यो तत्र क्षीरं क्षीरप्रयोवित्रणा ॥
अमावस्या निषिद्धानि ततश्च पशुपालनम् ॥ विवाह संस्कार, वतचर्यादि, पुत्रजन्म, अखिल गृहस्थधर्म का उप
देश, भक्ष्याभक्ष्य की व्यवस्था, द्रव्य शुद्धि, अध्ययन अध्यापन का समय, श्राद्ध कर्म, नारायणवली, सूतक तथा अशौच, प्रायश्चित्त विधान, दानविधि तथा फल, भूमिदान की प्रशंसा, इष्टापूर्त कर्म, ग्रहों की शान्ति, वानप्रस्थ धर्म, चारों आश्रम, दो मागं-अचि तथा धूम मार्ग इन सबका वर्णन यथानुपूर्व बृहत् पराशर के द्वादश अध्याय में वताया है
३६-६४ २. आचारधर्मवर्णनम् : ६८८ चारों वर्गों का धर्मपालन
१-३ कौन-कौन कर्म कलियुग में करने चाहिए तथा उनकी विधि नित्यषट्कर्म, सन्ध्याकृत्य तथा सवाचार कृत्यवर्णनम् ६८९
"कर्मषटकं प्रवक्ष्यामि, यत्कर्वन्तो द्विजातयः । ..... गृहस्था अपि मुख्यन्ते संसार बन्धहेतुभिः" ॥ संध्या, स्नान, जप, देवताओं का पूजन, वैश्वदेव कर्म, आतिथ्य इन षट्कर्म आदि
५-८५
५-८५ आचारवर्णनम् : ६८६ सात प्रकार के स्नान का वर्णन-मंत्रस्नान, पार्थिव स्नान, वायव्य
स्नान, दिव्यस्नान, वारुणस्नान, मानसस्नान तथा आग्नेयस्नान
इनके मन्त्र फल सहित बताकर प्रातःस्नान का माहात्म्य ८६-६३ उपाकाल स्नान
६४-६६ गङ्गा और कुयें के स्नान तथा स्नान का समय
६७-२०८
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