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विष्णुस्मृति ३७. उपपातक वर्णनम् : ४६९ उपपातक-झूठ कहना, वेदों की और गुरु की निन्दा सुनना इत्यादि उपपात
बतलाये हैं।
३८. सकर्तव्यता जातिभ्रंशकरण प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४६६ जातिभ्रंशकरण-जैसे पशु में मैथुन करना इत्यादि । ३९. जीवहिंसाकरण (संकरीकरणे) दोषस्तत् प्रायश्चित्त
वर्णनम् : ४७० संकरीकरण-पशु आदि की हिंसा ।
४०. अपात्रीकरण (आदानपात्रं) तद्वर्णनम् : ४७० अपात्रीकरण नीच आदमियों से धन, दान लेना और चक्रवृद्धि आदि से रुपया लेना।
४१. मलिनीकरण तत्प्रशमनवर्णनम् : ४७० मलिनीकरण के पाप-पक्षी आदि को मारना ।
४२. अकर्तव्या विषये (प्रकीर्णप्रायश्चित्त वर्णनम् : ४७१ ब्राह्मण (ब्रह्म नैष्ठिक) के आज्ञा से प्रकीर्ण पातक बड़ा या छोटा जो हो सो प्रायश्चित्त करे।
४३. नरकाणां संज्ञां तेषां वर्णनम् : ४७१ नरक, तामिस्र, अन्धतामिस्रादि-जो पाप करके प्रायश्चित्त नहीं करते उन्हें __ मरने के बाद इस नरक में जाना पड़ता है।
४४. नरकस्थानां यमयातना निर्णयः : ४७३ पापी आदमियों को नरक जाने के अनन्तर तिर्यग् योनि, अति पातकों को
स्थावर, और महापातकी को कृमि, उपपातकी को जलज योनि और
जातिभ्रंश को जलचर योनि इत्यादि । जो दूसरे के द्रव्य को हरण करता है उसे अवश्य सर्प की योनि प्राप्त होती है ।
४५. नरकोतीर्ण तिर्यग्योन्योर्मनष्ययोनि वर्णनम-- पापकर्मणा कर्मविपाकेन मनुष्याणां लक्षणानि (चिह्न)
वर्णनम् : ४७४ नरक भोगने के बाद और तिर्यग् योनि भोगने के बाद जब मनुष्य योनि में
आता है तो उसके क्या निशान हैं। यथा-अतिपातकी कुष्ठी, ब्रह्म- . हत्यारा यक्ष्मारोगी, गुरुपत्नीगामी दुष्कर रोग से ग्रसित रहते हैं।
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