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शंका नवि चित्त धरिये !...xlili नहीं? वर्तमान में गृह मंदिर का निर्माण कितना उपयोगी है? आदि अनेक ऐसी शंकाएँ एवं समस्याएँ हैं जिन विषयों पर वर्तमान जीवन शैली आदि को ध्यान में रखते हुए शास्त्रीय मंथन करना आवश्यक प्रतीत हो रहा था।
श्रावक वर्ग एवं पाठक वर्ग की शंकाओं के विषय में आगम पाठों, प्राचीन उद्धरणों, अर्वाचीन कृतियों तथा विभिन्न बहुश्रुत आचार्यों द्वारा जो समाधान प्राप्त हुए उसी को आधार बनाकर सम्यक समाधान देने का प्रयास किया है ताकि श्रावक वर्ग के मन में यह बात स्थापित हो जाए कि ___ 'जिन पडिमा जिन सारखी रे, न करो शंका कांई'
इस समाधान यात्रा की प्रकाशन वेला पर मैं विशेष रूप से आभारी हूँ, पूज्य आचार्य श्री कीर्तियशसूरीश्वरजी म.सा, पूज्य आचार्य राष्ट्रसंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा., पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. एवं ऋजु स्वभावी मुनि श्री पीयूष सागरजी म.सा. के प्रति, जिन्होंने अपना बहुमूल्य मन्तव्य एवं मार्गदर्शन देकर इस कृति को जन उपयोगी बनाने में सहयोग दिया।
इन आत्मीय प्रयासों के बावजूद भी यदि अज्ञानतावश शास्त्रोक्त वचनों को सम्यक रूप से न समझने के कारण कोई भी त्रुटि रही हो या जिन वाणी के विरुद्ध कुछ भी जाने-अनजाने में लिखा हो, उत्सूत्र प्ररूपणा की हो तो सुज्ञजन इससे अवश्य ज्ञात करवाएँ। जिनवाणी रूप श्रुतमाता से भी मैं इसके लिए अंत:करण पूर्वक क्षमायाचना करती हूँ। ___अंत में यही अभ्यर्थना है कि यह कृति शंकाओं के समाधान में, जिज्ञासुओं के शास्त्रामृत पान में, भव्य जनों के उत्थान में, विधि-अविधि के यर्थाथ ज्ञान में और विभ्रान्त मान्यताओं के खण्डन में सहयोगी बने!
प्र. सज्जन चरण रज साध्वी सौम्यगुणा श्री