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करिए जिनदर्शन से निज दर्शन ...27 लघु स्नात्र यद्यपि अल्प व्यय साध्य थी परन्तु उनका सामान जुटाने एवं पढ़ाने वाले की आवश्यकता तो होती ही थी। इसीलिए कई छोटे स्थलों पर लघुस्नात्र करवाना भी अशक्य प्रतीत होता था। इसके अपवाद रूप में अनेक स्थानों पर मूर्तियों को स्नान करवाकर, चन्दन-केसर के द्वारा तिलक कर एवं पुष्प आदि द्रव्य चढ़ाकर अष्ट प्रकारी पूजा की परिपाटी प्रारंभ हुई होगी। इसी के साथ वर्तमान व्यस्त जीवन शैली के कारण लोगों में धर्म कार्यों के लिए अधिक समय व्यतीत करने की मानसिकता भी नहीं है। यही कारण है कि पूजा सम्बन्धी विधि-विधान अष्ट प्रकारी पूजा तक ही सीमित रह गए हैं।
शंका- आंगी एवं अलंकार पहनाने की विधि शास्त्रोक्त है या अर्वाचीन?
समाधान- वीतराग परमात्मा की राज्य अवस्था को प्रदर्शित करने हेतु शास्त्रों में आभरण पहनाने का विधान है। आगम सूत्रों में जहाँ देवों द्वारा पूजा करने का उल्लेख आता है, वहाँ भी आभरण चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। परमात्मा की पिण्डस्थ अवस्था का चिंतन करते हुए राज्यावस्था के समय वस्त्र, आभूषण आदि चढ़ाए जाते हैं। परंतु वर्तमान में यह प्रवृत्ति अपेक्षाधिक बढ़ गयी है। कई स्थानों पर तो मात्र प्रक्षाल के समय ही आंगी आदि उतारी जाती है और पुन: चढ़ा दी जाती है। इस अति प्रवृत्ति के कई हानिकारक परिणाम भी सामने आ रहे हैं जैसे कि आजकल मंदिरों में चोरी के प्रसंग बढ़ते जा रहे हैं। इस कारण कई बार मूर्तियाँ खंडित हो जाती है। जो कार्य कभी-कभी हो उसमें लोगों की रुचि अधिक होती है तथा वह मन को आनंदित भी करती है। परन्तु रोज-रोज अंग रचना होने से परमात्मा का मूल वैराग्य उत्पादक स्वरूप गौण हो जाता है। अत: अंगरचना, अलंकार आदि चढ़ाना शास्त्रोक्त है तथा पर्व दिनों में आंगी होनी भी चाहिए किन्तु उसकी अति प्रवृत्ति सर्वत: अनुचित है। इससे परमात्मा की पिण्डस्थ, पदस्थ एवं रूपातीत अवस्था का चिंतन सम्यक प्रकार से नहीं हो सकता।
शंका- दीपक पूजा क्यों की जाती है? तथा दीपक घी का होना चाहिए या तेल का?
समाधान- मंदिर में दीपक की रोशनी दो कारणों से की जाती है1. परमात्मा की दीपक पूजा करने के लिए और 2. मंदिर में प्रकाश करने के