Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 142
________________ 92... शंका नवि चित्त धरिये ! केशवकृत कल्पद्रुम कोष, जैन सत्य फ्र.क. 61) गोपाल का अर्थ है पाँच इन्द्रिय विषय के पोषकणी ग्रामा का अर्थ मुखिया और पाँच इन्द्रियों को तृप्त करने वाला होता है। इससे स्पष्ट है कि घंटाकर्ण समकिती या धर्म पोषक देव नहीं है। . खरतरगच्छीय उपाध्याय श्री जयसागर गणि के अनुसार बड़ी शांति,वसुधारा और घंटाकर्ण ये बौद्धों के हैं ऐसा गीतार्थ मानते हैं। (उद्धृत-जैन सत्य. प्र. क्र. 61)। • पूज्य कल्याणविजयजी गणिवर के अनुसार घंटाकर्ण जैन देव नहीं है (उद्धृत-जैनसत्य. प्र.क्र. 56, पृ.-5, अंक-8)। • कल्याणकलिका में घंटाकर्ण की थाली बजाने की प्रक्रिया को निराधार और झूठी बताया है। • आचार्य विजय लब्धिसूरि के अनुसार घंटाकर्ण वीर बौद्धों के देव है अत: उनके सम्यक्त्वी होने का प्रश्न ही नहीं रहता। (उद्धृत-कल्याण मासिक, वर्ष-13, अंक-1, पृ. 654)। जैन शास्त्रों में रुद्र, भंडारी यक्ष, हासा, प्रहासा, सीकोतरी, घंटाकर्ण आदि के नाम प्रसंगोपेत उल्लेखित हैं। इससे वे समकिती देव के रूप में मान्य नहीं हो जाते। • जैन साप्ताहिक में आए एक लेख के अनुसार श्वेताम्बर जैन यतिओं ने चौथी सदी में जैन-जैनेतर मंत्र विधानों में से कुछेक मंत्र विधान लिए थे उसी में से बौद्ध धर्म या शैव धर्म से घंटाकर्ण मंत्र लिया होगा। दिगंबर जैन भट्टारक नवीन जिनालय बनाते समय पहले अमक देवों की आराधना कर स्वप्न प्राप्त करते थे। बहुत समय बीतने के बाद यह स्थान घंटाकर्ण ने लिया होगा। उसके बाद श्वेताम्बर यतियों ने भी ऋषिमंडल के साथ घंटाकर्ण की आम्नाय ली ऐसा ज्ञात होता है। संभव है कि इसी प्रकार एक-दूसरे के माध्यम से जैन परम्परा में भी जैन मंत्रवादिओं, दिगम्बर भट्टारकों, लोकगच्छ के यतिओं, स्थानकवासी ऋषियों एवं जैन मुनियों ने घंटाकर्ण का मंत्र लिया होगा और इसी प्रकार वह जैन विधिविधानों में सम्मिलित हुआ होगा। वे हरिजनों के कामना पूरक देव हैं। (घंटाकर्ण की विशेष चर्चा के लिए 7-4-1939 तथा 17-4-1940 के साप्ताहिक जैन

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