Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 143
________________ देवी-देवताओं की उपासना के मुख्य घटक ...93 देखिए)। • ऐतिहासिक दृष्टि से कहा जाए तो विविध राज धर्मों का शासन अथवा उस समय में जैन धर्म के स्थानों में पाँच पीर, कब्र मस्जिद के ढाँचे आदि का समावेश हो चूका होगा। कुछेक आचार्यों का मत है कि बावन वीरों में घंटाकर्ण का नाम आता है एवं शांति स्नात्र में घंटाकर्ण का थाल निकालने की परम्परा है अत: घंटाकर्ण सम्यक्त्वी देव होने चाहिए। उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के मतानुसार घंटाकर्ण देव का उद्भव खरतरगच्छ परम्परा से ही हुआ है तथा आचार्य बुद्धिसागरजी को घंटाकर्ण का प्रत्यक्ष मंत्र किसी खरतरगच्छ के आचार्य द्वारा ही प्रदान किया गया था। अत: उनकी गणना परम्परानुसार सम्यक्त्वी देवों में होती है। इस विषय में यथार्थ तथ्य अनुसंधान पूर्वक गीतार्थ गुरुओं द्वारा जानने योग्य है। शंका- जैन धर्म वीतराग उपासक है अत: राग-द्वेष युक्त देवी-देवताओं की उपासना क्या शास्त्रोक्त है? तथा इनकी उपासना कब प्रचलन में आई? समाधान- जैन आगमों के अनुसार धर्म का प्रथम सोपान सम्यगदर्शन है। वीतराग देव के अतिरिक्त राग-द्वेष युक्त किसी भी देवी-देवता की उपासना का निषेध करते हुए उसे मिथ्यात्व माना है। परमात्म के सेवक रूप एवं शासन रक्षक कुछ सम्यग्दृष्टि देवी-देवताओं को साधर्मिक बंधु के रूप में अवश्यमेव स्वीकार किया गया है। जिनशासन में देवी-देवताओं की मान्यता विशेष रूप से हिन्दू धर्म के भक्ति आंदोलन का प्रभाव प्रतीत होता है। प्राचीन काल में गीतार्थ आचार्यों ने लाखों अजैनों को प्रतिबोधित कर जैन बनाया जो मूल रूप से हिन्दू, ब्राह्मण आदि परम्पराओं से होते थे। इसी के चलते शनैः शनैः देवी-देवताओं की पूजा का समावेश होता गया। जैन धर्म में पुरुषार्थ और कर्म को प्रधानता दी गई है। एक सच्चा श्रावक कभी भी याचना नहीं करता। गौतम स्वामी ने एकदा भगवान महावीर से पूछा . भगवन! देवी-देवताओं की पूजा अर्चना सफल होती है अथवा निष्फल? ये लोग मनुष्य की सहायता क्यों करते हैं? भगवान- गौतम! इस संसार में रागी-द्वेषी देव भी हैं। वे ही मनुष्य की पूजा अर्चना से प्रसन्न होते हैं तथा अवज्ञा-निंदा आदि से कुपित होते हैं। वाणव्यंतर,

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