Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 127
________________ कैसे बचें विराधना से? ...77 उसका पहनने हेतु उपयोग नहीं करें। श्रावकों को हमेशा एक अतिरिक्त नई पूजा की जोड़ रखनी चाहिए ताकि कारण विशेष में पूजा का क्रम खण्डित न हो। पूजा के वस्त्रों को अन्य वस्त्रों से अलग रखना चाहिए। शंका- जिनालय में गुरु महाराज को वंदन कर सुखशाता पूछ सकते हैं? समाधान- जिन मन्दिर आदि में गुरु महाराज को वंदन कर सुखशाता नहीं पूछनी चाहिए। वंदन आदि क्रिया करने से उन्हें एवं अन्य लोगों को दर्शन में बाधा उत्पन्न हो सकती है। अंतराय आने से कुछ लोगों के मन में विक्षेप भी उत्पन्न हो सकता है। इससे परमात्मा की आशातना भी होती है। शंका- जिन मन्दिर होने पर भी दर्शन नहीं करें तो कितना प्रायश्चित्त आता है? समाधान- श्री महाकल्पसूत्र के अनुसार कोई श्रमण, माहण या तपस्वी चैत्यघर (मंदिर) के दर्शन प्रमाद वश नहीं करें तो उसे बेले अथवा पाँच उपवास का प्रायश्चित्त आता है। यही प्रायश्चित्त पौषधधारी श्रावक के लिए भी निर्दिष्ट है। अत: मन्दिर दर्शन सभी के लिए आवश्यक है। शंका- जिनपूजा-करते हुए भी उपसर्ग एवं अशुभ कर्मोदय का क्या कारण है? समाधान- जिनेश्वर परमात्मा की आराधना से उपसर्गों का नाश एवं कर्मों का क्षय होता है। कई बार परमात्मा की पूजा भक्ति आदि करते हुए भी पूर्वबद्ध कर्मों के कारण अशुभ कर्मों का उदय एवं प्रतिकूल परिस्थितियाँ ही प्राप्त होती है। उस समय कई लोग यह कहते हुए सुने जाते हैं कि इतना धर्म करते हैं फिर भी हमारे साथ कुछ अच्छा ही नहीं होता तो कुछ लोग यह कहते हुए भी सुने जाते हैं कि जब से धर्म करना चालू किया है तब से और ज्यादा पाप का उदय चल रहा है। किन्तु यह शाश्वत सत्य है कि धर्म करने से कभी पाप का उदय नहीं आता। वर्तमान में जैसा भी कर्मोदय चल रहा हो वह तत्समयवर्ती कर्मबन्ध का परिणाम नहीं होता वह तो अनेक पूर्वबद्ध कर्मों का प्रतिफल होता है। सम्यक दृष्टि सम्पन्न श्रावक तो हंसते हुए उन कर्मों का भी क्षय करता है। वह विचारता है कि स्वकृत अच्छे और बुरे कर्म स्वयं को ही भोगने पड़ेंगे। जब धर्म बुद्धि जागृत हो और विपरीत कर्मों का उदय हो तब श्रावक उसमें कर्म निर्जरा ही करता है अन्यथा उन्हीं परिस्थितियों में सामान्य व्यक्ति बंधे हुए कर्मों

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