Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 136
________________ 86... शंका नवि चित्त धरिये ! शंका- फले- चुंदडी की राशि का उपयोग कर्मचारियों के वेतन भुगतान हेतु कर सकते हैं? समाधान- फले चुंदडी की राशि का उपयोग सात क्षेत्रों के अतिरिक्त, जीव दया, अनुकम्पा दान, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त मानव सहायता के कार्यों में कर सकते हैं। इस राशि का इस्तेमाल निःस्वार्थ भाव से दान आदि के निमित्त करना चाहिए। किसी से काम करवाकर उसके मेहनताने के रूप में यह राशि देने पर अदत्तादान एवं अंतराय का दोष लगता है। शंका- प्रतिष्ठा और अंजनशलाका में क्या अंतर है ? समाधान- प्रतिष्ठा शब्द का मूल अर्थ है प्रतिमा की अंजन विधि करके उसमें प्रभु के गुणों को स्थापित करना । भगवान को विराजमान करना यह बिम्ब प्रवेश कहा जाता है। वर्तमान में बिम्ब प्रवेश को प्रतिष्ठा एवं प्रतिष्ठा को अंजनशलाका कहा जाता है। शंका- प्रतिष्ठा के पूर्व महोत्सव करना चाहिए या बाद में ? समाधान- आचार्य हरिभद्रसूरि एवं प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार प्रतिष्ठा के बाद आठ दिन तक महोत्सव करना चाहिए। वर्तमान में सभी जगह प्रतिष्ठा से पूर्व महोत्सव करवाने का चलन देखा जाता है। शंका - विधिकारकों द्वारा प्रतिष्ठा करवाना उचित है या नहीं ? समाधान- प्रतिष्ठा कोई सामान्य विधान या परमात्मा को मात्र सीमेंट से चिपकाने की क्रिया नहीं है। यह जिन प्रतिमा में प्राणों एवं जिनत्व के भावों का आरोपण है। प्रतिष्ठाचार्य के भावों के आधार पर ही प्रतिष्ठा की श्रेष्ठता एवं सफलता निर्भर करती है । इसीलिए शास्त्रों में यह विधान करवाने का अधिकार आचार्य एवं तद्योग्य मुनियों को ही है। ऐसे स्थान जहाँ पर मुनि भगवंतों का आना-जाना संभव नहीं हों वहाँ के मन्दिरों के लिए आचार्यों की निश्रा में अंजनशलाका करवा देनी चाहिए । फिर आचार सम्पन्न श्रावक द्वारा अट्ठम आदि तप पूर्वक एवं आचार्य आदि की अभिमंत्रित वासक्षेप से प्रतिष्ठा करवाई जा सकती है। यह एक अपवाद मार्ग है। वर्तमान में विधिकारकों का बढ़ता महत्त्व अवश्य विचारणीय है। शंका- प्रतिष्ठा महोत्सवों में बढ़ते आडम्बर एवं पत्र-पत्रिकाओं का विराट कलेवर कितना समुचित है ?

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