Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 138
________________ अध्याय- 10 जीव दया की राशि का उपयोग कब और कैसे? शंका- जीव दया की टीप का पैसा देरी से आए तो दोष का भागी कौन ? समाधान- किसी भी बोली, उजवणी, चढ़ावें या टीप का पैसा श्रावक को तुरंत जमा करवा देना चाहिए। उसमें भी जीव दया का पैसा श्रावकों को तुरंत जमा करवा देना चाहिए अन्यथा लिखवाने वाले को मूक जीवों की दया में अंतराय का दोष लगता है। ट्रस्टी गणों को भी उस राशि को सुयोग्य पांजरापोल आदि में भेज देना चाहिए। पुराना पैसा आने पर यदि देव द्रव्य की राशि हवाला (जमा-उधार-एंट्री) आदि द्वारा भेजी जाए तो देवद्रव्य भक्षण का दोष लगता है । देरी से भरने पर मन्दिर को ब्याज का घाटा होता है इसका दोष भी श्रावकों को ही लगता है। अत: बोली-टीप आदि का पैसा तुरंत जमा करवा देना चाहिए और यदि कारण विशेष से देरी हो जाए तो उतने दिन का ब्याज भी साथ देना चाहिए। शंका- जीव दया की राशि का उपयोग मानव सेवा या अनुकम्पा कर सकते हैं? मनुष्य भी तो जीव है ? समाधान- जीव दया के चंदे में 'जीव' शब्द का तात्पर्य मनुष्य के अलावा अन्य सभी त्रस जीवों से है अर्थात पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों से है । अत: इसे मानव सेवा के किसी भी कार्य में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। मनुष्य इन सभी जीवों से अधिक शक्तिशाली तथा स्वयं के भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम है। अतः मनुष्य के लिए इस राशि का प्रयोग करना अमानवीय है। मानव सहायता के लिए अनुकम्पा का फंड इकट्ठा करना चाहिए। आवश्यकता होने पर अनुकम्पा का फंड जीव दया में जा सकता है। शंका- जीव दया की राशि का समुचित उपयोग न होता हो और अनुकम्पा के क्षेत्र में आवश्यकता हो तो जीव दया के स्थान पर अनुकम्पा का चंदा इकट्ठा कर सकते हैं?

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