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82... शंका नवि चित्त धरिये! की प्रेरणा मिलती है लेकिन यदि द्रव्य मन्दिर में ही रख दिया जाए तो यह कैसे संभव हो सकता है? अत: मन्दिर जाते हुए पूजा सामग्री साथ लेकर ही जाना चाहिए। अपवादत: यदि कोई स्कूल या ऑफिस जाते हुए पूजा करता हो और द्रव्य साथ में ले जाना संभव न हो तो श्रावक अपना विवेक रखें।
शंका- जिनमन्दिर में प्रवेश करने से पूर्व पैर क्यों धोने चाहिए?
समाधान- जिनालय जाते समय नंगे पाँव चलने से पैर मार्ग में रही गंदगी से अशुद्ध हो जाते हैं। उस अशुद्धि के साथ मन्दिर में प्रवेश करने से मन्दिर भी अशुद्ध हो जाता है। जिनबिम्ब को अशुद्धि के साथ स्पर्श नहीं कर सकते अत: पूजार्थी के लिए पैर धोना आवश्यक है। दर्शनार्थी पाद पोंछन से पैर पोंछकर भी प्रवेश कर सकते हैं। पैर धोते समय यह विवेक अवश्य रखना चाहिए कि धोने के स्थान पर लीलन-फूलन या काई न हो तथा चींटियाँ न आती हो। पैरों को जहाँ धोए वहीं पर पोंछने चाहिए क्योंकि गीले पैरों से चलने पर सूक्ष्म जीवों की हिंसा हो सकती है। अत: पैर धोना एक आवश्यक क्रिया है परन्तु उससे भी महत्त्वपूर्ण है उसे धोते समय जयणा रखना।
शंका- मन्दिर जाते समय कैसे वस्त्र पहनने चाहिए?
समाधान- मन्दिर दर्शन हेतु शुद्ध एवं मर्यादा युक्त वस्त्र पहनने चाहिए। पुरुषों के लिए उत्तरासंग आवश्यक बताया गया है। सामर्थ्य के अनुसार श्रावकों को बहुमूल्य सूती वस्त्र पहनने चाहिए। उत्तरासंग के पल्ले से ही आठ पट्ट का मुखकोश बनाना चाहिए। श्रावकों के लिए अलग से मुखकोश बांधने का विधान नहीं है। पुरुषों को पूजा हेतु दो एवं महिलाओं को तीन वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। पूजा के वस्त्रों को अधिक समय तक पहने रहने पर पानी से अवश्य निकालना चाहिए। परमात्मा की पूजा हेतु फटे, सिले, सांधे या जले हुए वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। पूर्वकाल में पूजा हेतु रेशमी वस्त्रों का विधान था क्योंकि तब प्राकृतिक रूप से उपलब्ध निर्दोष रेशम से वस्त्र बनाए जाते थे परन्तु वर्तमान में रेशम की प्राप्ति के लिए जीवों को पीड़ित किया जाता है अतः सूती वस्त्रों के प्रयोग का भी निर्देश मिलता है।
शंका- पूजा के लिए स्नान करने के बाद कैसे वस्त्र से शरीर पोंछना चाहिए?
समाधान- पूजा हेतु स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र से शरीर पोंछना