Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ द्रव्य पूजा में हिंसा का प्राधान्य या अहिंसा का ? ...41 शंका- प्रतिमा पर रहे पुष्पों को यदि रात्रि में रखने पर जीवोत्पत्ति होती हो तो क्या करना चाहिए? समाधान- फूलों में जीवोत्पत्ति होना उनका स्वभाव है। यदि रात्रि भर प्रतिमाजी के ऊपर पुष्प रहने से उनमें जीवोत्पत्ति की संभावना होती हो तो शाम को भी फूल हटाए जा सकते हैं। शंका- अक्षय तृतीया के दिन इक्षुरस से किसका प्रक्षाल करना चाहिए ? समाधान- व्यवहारतः तो इक्षुरस से मात्र आदिनाथ भगवान का ही प्रक्षाल होता है परंतु यदि कहीं पर आदिनाथ भगवान की प्रतिमा ही न हो तो अन्य प्रतिमा का प्रक्षाल करने में कोई शास्त्रीय निषेध नहीं है। कुछ आचार्यों के अनुसार तो किसी भी परमात्मा का इक्षुरस से प्रक्षाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि अविवेक से करने पर सूक्ष्म जीव-जंतुओं के उपद्रव एवं उनके हिंसा की पूर्ण संभावना रहती है जबकि कुछ आचार्य इसका समर्थन भी करते हैं। यदि यह प्रवृत्ति विवेक पूर्वक की जाए तो दोष जनक नहीं है । शंका- एक बार प्रक्षाल होने के बाद दुबारा कर सकते हैं? समाधान- संयोग अनुसार यदि शुभ भावों में अभिवृद्धि होती हो, आत्म परिणामों में उच्चता आती हो तो पुनः प्रक्षाल करने में कोई दोष नहीं है। परंतु यदि संघ की व्यवस्था भंग होती हो तो देरी से आने वालों को इसका आग्रह नहीं रखना चाहिए। छोटी पंच धातु की प्रतिमाजी का प्रक्षाल करके भी भावों की अभिवृद्धि की जा सकती है। शंका- जिनपूजा में वरख का उपयोग कितना औचित्य पूर्ण है ? समाधान- जिनपूजा के अन्तर्गत परमात्मा की विविध अवस्थाओं का चिंतन किया जाता है। उन्हीं अवस्थाओं में से एक राज्य अवस्था है जिसके प्रतीक रूप में अंगरचना की जाती है । व्यवहार भाष्य में परमात्मा के श्रृंगार कर्म का अर्थ अंगरचना ही किया गया है। पंचाशक, षोडशक, दर्शनशुद्धि आदि प्रकरण ग्रन्थों में जिनपूजा हेतु उत्तम द्रव्यों के उपयोग का निर्देश दिया है। सोनाचाँदी आदि श्रेष्ठ द्रव्य माने जाते हैं इसी कारण वरख का प्रयोग किया जाता है। केवल शोभा या सुंदरता हेतु वरख का प्रयोग नहीं होता । आंगी रचना परमात्मा से जुड़ने का साधन है। परमात्मा के बाह्य रूप से उनके आंतरिक स्वरूप का भान होता है। पिंडस्थ, पदस्थ एवं रूपातीत अवस्था

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152