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वर्तमान में गृह मन्दिरों का औचित्य कितना? 57
कि पूर्व में प्राय: हर घर में गृह मन्दिर होता था। 19वीं शती तक अणहिलपुर पाटण में लगभग 500 घर मन्दिर थे। आज वह संख्या कम होते-होते 30 तक पहुँच गई है। सूक्ष्म चिंतन करने पर निम्न तथ्य प्रकट होते हैं
पूर्वकाल में नित्य पूजा का विधान नहीं था अतः श्रावकों को घर मंदिर बनाने के बाद कोई विशेष प्रबंध नहीं करना पड़ता था । श्रावक स्वेच्छा से परमात्म भक्ति करते थे, किसी नियम का बंधन नहीं था। दूसरा कारण आज की जीवन शैली और पूर्व की जीवन शैली में बहुत अंतर आ गया है। आज के लोगों को धर्म एवं अध्यात्म अंधविश्वास लगते हैं। वे मात्र व्यावसायिक एवं भौतिक जीवन को प्रमुखता देते हैं। बढ़ती आबादी के कारण जगह की समस्या भी एक बहुत बड़ी समस्या है। मुंबई जैसे छोटे-छोटे घरों में घर मन्दिर बनाना संभव भी नहीं है।
अंतराय का पालन नहींवत होता है इससे आशातना होने का भय रहता है । ऐसी ही अनेक भ्रान्त मान्यताओं के कारण घर मन्दिरों की संख्या घटती जा रही है
शंका- घर मंदिर के उपकरण गृह कार्य में अथवा घर के उपकरण गृह मंदिर के कार्य में प्रयुक्त हो सकते हैं ?
समाधान- घर मंदिर की कोई भी वस्तु सांसारिक गृह कार्य के लिए उपयोग में लेना अनुचित है तथा सांसारिक गृह कार्य में प्रयुक्त वस्तु का मंदिर के कार्य में उपयोग भी योग्य नहीं। यदि कारण विशेष में घर की वस्तु का उपयोग मंदिर के लिए करना हो तो उसे अच्छे से मांजकर शुद्धि पूर्वक काम में लेनी चाहिए। जो उपकरण प्रभु के समक्ष समर्पित न किए गए हों उनका गृह कार्य के लिए उपयोग हो सकता है।
प्रश्न- गृह मंदिर में अखंड दीपक होना आवश्यक है ?
समाधान - श्री संघ मंदिर में भी अखंड दीपक को आवश्यक नहीं माना है तो फिर घर मंदिर में अखंड दीपक आवश्यक कैसे हो सकता है? पूजा - सेवा के समय दीपक प्रगटाकर आरती आदि करने तक उसका उपयोग होता है उसके बाद न जले तो भी कोई दोष नहीं है और जलता रहे तो कोई हानि भी नहीं है ।