Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 113
________________ ऐसे करें जिन मन्दिर व्यवस्था ...63 इन परिस्थितियों में मूर्तियों एवं मन्दिरों का प्रभाव न्यून होता ही है और यदि अब भी श्रावक वर्ग नहीं जागा तो वह दिन दूर नहीं जब जैन मन्दिर मात्र पुजारियों की सम्पत्ति बनकर रह जाएंगे। अत: आज जो स्थान पुजारियों को दिया जा रहा है, जितनी निर्भरता हमारी पुजारियों पर हो गई है वह सर्वथा अनुचित है। सर्वप्रथम तो जिन मन्दिरों में पुजारियों की आवश्यकता ही नहीं है और यदि किसी संघ को व्यवस्था हेतु रखना आवश्यक भी प्रतीत होता है तो श्रावकों को अपना पूर्ण समय एवं भोग जिनमन्दिर की व्यवस्था में देना चाहिए। शंका- पुजारी आदि कर्मचारियों को वेतन किस द्रव्य में से देना चाहिए? समाधान- मन्दिर के पुजारी आदि का वेतन श्रावकों को स्व राशि से देना चाहिए क्योंकि पुजारियों की व्यवस्था मात्र श्रावकों की सुविधा के लिए है। देवद्रव्य की राशि से पुजारियों को पगार नहीं देनी चाहिए। वैसे साधारण खाते से यह कार्य किया जा सकता है। शंका- पुजारी कैसा होना चाहिए? समाधान- पुजारी के रूप में नियुक्त करने वाले व्यक्ति के लिए पहले से यह निश्चित कर लेना चाहिए कि वह व्यसन सेवी न हो, सदाचारी हो, अच्छी संगति में रहता हो, भक्ति-भाव वाला हो, जिन मंदिर सम्बन्धी नियम-मर्यादाओं का ज्ञाता एवं यथोचित पालन करने वाला हो, नम्र स्वभावी एवं मृदु भाषी हो। प्रमाद, लालच, चोरी आदि दुर्गुणों से रहित हो। क्योंकि ऐसा पुजारी ही मन्दिर के लिए लाभकारी हो सकता है। व्यसनसेवी पुजारी मन्दिर को हानि पहुँचा सकता है अथवा किसी अप्रिय घटना में भी हेतुभूत बन सकता है। शंका- जिनमंदिर खोलने के साथ सर्वप्रथम क्या करना चाहिए? · समाधान- जिनमन्दिर खोलते ही सर्वप्रथम काजा निकालना चाहिए। काजा निकाले बिना मन्दिर सम्बन्धी कोई भी क्रिया की जाए तो महादोष लगता है। शंका- शास्त्रानुसार प्रक्षाल का यथोचित समय कौनसा है? समाधान- विधि ग्रन्थों के अनुसार जब सूर्य की किरणों का मूल गर्भगृह में प्रवेश हो जाए उसके बाद परमात्मा का प्रक्षाल करना चाहिए। इससे सूक्ष्म जीवों की हिंसा नहीं होती तथा वातावरण में व्याप्त नमी, अशुद्धता आदि भी

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