Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ 72... शंका नवि चित्त धरिये! समाधान- जिन्हें अधिक पसीना आता हो और वह पसीना यदि जिनबिम्ब आदि पर टपकता हो तो ऐसे भक्त जनों को अंगलुंछण आदि कार्य नहीं करने चाहिए अथवा थोड़ी-थोड़ी देर में बाहर आकर शुद्ध वस्त्र से पसीना पोंछते रहना चाहिए। चंदन घिसने की व्यवस्था यथासंभव हवादार स्थानों में करनी चाहिए। यदि वैसा संभव न हो तो पूर्ण उपयोग पूर्वक पसीने को पोंछकर फिर चंदन घिसना चाहिए। वर्तमान में कहीं-कहीं पर मन्दिरों में पंखों का उपयोग देखा जाता है यह औचित्यपूर्ण नहीं है। शंका- जैन शास्त्रों में रात्रि जागरण का उल्लेख है तो फिर मन्दिरों में रात्रि जागरण या भक्ति क्यों नहीं हो सकती? समाधान- जैन साहित्य में तपस्या के उजमणे (उद्यापन), कल्पसूत्र, पालनाजी आदि की भक्ति हेतु रात्रि जागरण करने का उल्लेख है, किन्तु वे जागरण घरों में करवाए जाते हैं। जिन मन्दिरों में रात्रि जागरण का विधान जैनागमों में कही भी नहीं है। संघ पट्टक और हीर प्रश्न में रात्रि को मन्दिर खुले रखने का निषेध है। रात्रि में ईर्यासमिति का पालन संभव नहीं है अत: सूर्यास्त के बाद जिनमन्दिर खुले रखने या जागरण करवाने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। कुछ लोगों के मन में प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि देवताओं द्वारा मन्दिरों में रात्रि भक्ति करने की बात प्रसिद्ध है फिर हम लोग क्यों नहीं कर सकते? देवता एवं मानव में कई भिन्नताएँ हैं। देवता अवधिज्ञानी एवं आकाशगामी होते हैं। वे भूमि से चार अंगुल ऊपर रहकर गीत, नृत्य आदि करते हैं। विशिष्ट शक्तियों द्वारा सूक्ष्म जीवों को भी देख सकते हैं। उनके आचारों की तुलना मनुष्य के आचार से नहीं की जी सकती। शंका- जिन मन्दिर में माला फेरना चाहिए या नहीं? समाधान- श्रावकों को जिनमन्दिर में चैत्यवंदन करने तक ही रूकने का विधान है अधिक समय तक रूकने से वायु आदि निकलने की संभावना रहती है। स्थान की संकीर्णता होने पर अन्य लोगों के लिए अंतराय एवं क्लेश का कारण उपस्थित हो सकता है। माला गिनते समय ध्यान मग्नता एवं एकाग्रता की आवश्यकता होती है, मन्दिर में लोगों के बार-बार आगमन के कारण चित्त की स्थिरता दुष्कर है। अत: माला आदि गृह चैत्य में ही गिननी चाहिए। यदि किसी के घर में अनुकूलता न हो और मन्दिर में सहज स्थान की प्राप्ति होती

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152