Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 121
________________ कैसे बचें विराधना से? ...71 की पूर्ण संभावना रहती है । शंका- अन्य धर्मों की ओर आकृष्ट जैनों को स्वधर्म से जोड़ने के लिए यदि पृथक-पृथक वारों में विविध सम्यक्त्वी देवी-देवताओं की साधना बताई जाए तो क्या दोष है ? समाधान - जिसने जैन धर्म के मूल हार्द को नहीं समझा है और जिनेश्वर परमात्मा की शक्ति को नहीं पहचाना है वही कामनापूर्ति के लिए इधर-उधर भटकने का कार्य करता है । जैन धर्म भोगों से विरक्ति एवं संसार मुक्ति का संदेश देता है और उसी तरह की आराधना का निरूपण करता है। वहीं अन्य धर्मों में भोगप्राप्ति, इच्छापूर्ति एवं संसार वृद्धि की बुद्धि से साधना की जाती है। परंतु जैन धर्म में पौद्गलिक लालसाओं के पोषण अथवा सांसारिक सुखों के वर्धन का मार्ग कहीं भी नहीं बताया गया है। सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए जिनेश्वर परमात्मा, निर्ग्रन्थ गुरु एवं शासन रक्षक देवी-देवताओं की आराधना करना सर्वथा अनुचित एवं मूर्खता का परिचायक है। ज्ञानियों ने इसे धान्य छोड़कर घास और तृण को ग्रहण करने के समान बताया है। इन भ्रामक परिस्थितियों में अन्यत्र जा रहे लोगों को सही मार्ग एवं वीतराग धर्म का मर्म और रहस्य बताकर सन्मार्ग पर लाना अधिक उचित है। शंका- पहले भाव पूजा और बाद में द्रव्य पूजा कर सकते हैं? समाधान- पूजा के क्रम में सर्वप्रथम द्रव्य पूजा और तदनन्तर भाव पूजा की जाती है। उसमें भी पहले अंग पूजा फिर अग्र पूजा और उसके बाद भाव पूजा करनी चाहिए। कारण विशेष होने पर यदि क्रमान्तर किया जाए तो क्षम्य है परन्तु स्वेच्छा से सुविधा के लिए क्रम परिवर्तन करना सर्वथा अनुचित है। 'प्रक्षाल के बाद अंगलुंछण आदि कार्यों में समय लगेगा यह सोचकर पहले अग्र पूजा और भाव पूजा को फटाफट निपटा देना, परमात्मा का अविनय एवं अपमान है। यदि हर कोई ऐसा करने लग जाए तो इससे मूलविधि का ही लोप हो जाएगा। किसी भी कार्य को यथाविधि करने पर ही यथोचित परिणाम प्राप्त होता है। शंका- अंगलूंछण करते हुए तथा केशर घिसते हुए पसीना आए तब क्या करना चाहिए?

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