Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

Previous | Next

Page 111
________________ ऐसे करें जिन मन्दिर व्यवस्था ...61 विवेक एवं जागृति रखनी चाहिए। शंका- जिन मन्दिर का काजा (कचरा) किससे निकालना चाहिए? समाधान- जिन मन्दिर में काजा निकालने हेतु कोमल झाडु का प्रयोग करना चाहिए। मुलायम ऊन का डंडासन या मोरपंछी का भी प्रयोग कर सकते हैं। प्रयुक्त साधन जीव-जन्तुओं के लिए पीड़ादायक नहीं हो इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए। शंका- पर्व के दिनों में मन्दिर कब मंगल करना चाहिए? समाधान- पर्व दिवस धर्माराधना हेतु Golden period माना जाता है। जो लोग नित्य आराधना नहीं करते वे भी इन दिनों में धर्म-कर्म से जुड़ने का प्रयास करते हैं। पर्व काल में पूर्ण मनोयोग एवं निष्ठापूर्वक जिनाज्ञा का पालन होना चाहिए। इससे पर्वकाल में आराधना करने वालों की शुद्ध एवं सम्यक आराधना हो सकती है तथा उन्हें सही विधि का ज्ञान भी होता है। अतः उन दिनों में उत्सर्ग रूप से तो मन्दिर सूर्यास्त के समय बंद कर देना चाहिए। सामाजिक व्यवस्था या परिस्थिति विशेष के कारण यदि ऐसा करना संभव न हो तो श्रावक वर्ग को अपना विवेक रखना चाहिए। शंका- जिन मन्दिरों में भंडार रखने की प्रथा कब से है? समाधान- पूर्वकाल में राजा, श्रेष्ठि, नगर सेठ आदि के द्वारा मन्दिर भूमि, ग्राम, सोना, चाँदी आदि अर्पण किए जाते थे। रुपए रखने की परम्परा नहीं होने से भंडार की आवश्यकता भी नहीं होती थी। संभवतया चैत्यवासियों के समय में भंडार रखने की प्रथा प्रारंभ हुई होगी अथवा जब से नित्य प्रक्षाल का क्रम प्रारंभ हुआ और मन्दिरों में पुजारियों की व्यवस्था प्रारंभ हई तब से और उनको मेहनताना देने हेतु भंडार व्यवस्था का सूत्रपात हुआ मालूम होता है। शंका- वर्तमान में चोरी के बढ़ते भय को देखकर देव द्रव्य की सुरक्षा किस प्रकार की जाए? समाधान- आजकल जिन मंदिरों में चोरी के दृष्टांत बढ़ते जा रहे हैं। अत: व्यवस्थापकों द्वारा समुचित व्यवस्था करना अत्यंत आवश्यक है। सर्वप्रथम तो भंडारों को हर सप्ताह खोलकर खाली कर देना चाहिए। इससे चोरी की संभावना कम हो जाती है। चाँदी के भंडार आदि को जमीन में फिट कर देना

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152