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60... शंका नवि चित्त धरिये ! चाहिए। संगीतकार एवं भजन मंडलियों द्वारा धार्मिक आयोजनों में अपने बैनर लगाना या विज्ञापन पर्यों को बाँटना भी अनुचित है।
धार्मिक कार्यक्रमों, एवं धर्म जागरण आदि से सम्बन्धित सूचनाएँ ही दी जा सकती है।
शंका- मंदिर का पट्ट मंगल होने के बाद खोल सकते हैं?
समाधान- सामान्यतया मंगल होने के बाद मन्दिर नहीं खोलना चाहिए। मध्याह्न के समय में यदि यात्री संघ आया हो तो मंदिर खोला जा सकता है किन्तु उसके बाद सूर्यास्त के पहले तक उसे मंगल नहीं करना चाहिए। कई तीर्थों पर मंदिर के दरवाजे बंद रखे जाते हैं और यात्री आने पर उन्हें खोल दिया जाता है और फिर उन्हें बंद कर दिया जाता है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि मन्दिरों की पूर्ण व्यवस्था पुजारियों की देख-रेख में होती है परिणामत: वे स्वच्छन्द मति से चलते हैं। दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि मन्दिरों को यदि खुला रख दिया जाए तो फिर उनका ध्यान कौन रखेंगा? अत: मंगल करके नहीं खोलने का विधान लगभग सन्ध्याकालीन मंगल करने के विषय में होना चाहिए।
शंका- मन्दिर में चढ़ाए गए निर्माल्य द्रव्य के नियोजन के लिए शास्त्रीय मार्ग क्या है?
समाधान- मन्दिर के निर्माल्य द्रव्य को बाजार में बेचकर उसका उचित मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। यदि दुकानदार से उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा हो अथवा वहाँ के श्रावक वर्ग द्वारा भी उसे खरीदने की संभावना न हो तो ऐसी स्थिति में जैनाचार्य अन्य मार्ग भी निर्दिष्ट करते हैं।
तदनुसार जिस प्रकार परमात्म भक्ति एवं मन्दिर व्यवस्था हेतु अष्टप्रकारी पूजा के वार्षिक या मासिक चढ़ावे बोले जा हैं उसी तरह मन्दिर के निर्माल्य द्रव्य का भी चढ़ावा बोला जा सकता है। प्रत्येक महीने एकत्रित निर्माल्य का चढ़ावा बोलकर उस द्रव्य को अपंग, भिखारी आदि को देने अथवा अन्य अनुकंपा दान के कार्यों में प्रयोग कर सकते हैं। इससे देवद्रव्य की वृद्धि तो होती ही है, अनुकंपा दान का लाभ भी प्राप्त होता है।
सामान्यतया यदि निर्माल्य द्रव्य बेचा जाता है तो कुछ परमानेन्ट दुकानों में ही बेचना चाहिए। श्रावक वर्ग को भी उन दुकानों से सामान खरीदते हुए