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56... शंका नवि चित्त धरिये !
समाधान- ग्रन्थकारों के अनुसार गृह मन्दिर में पाषाण, लोह, चंदन, लकड़ी, हाथी दाँत एवं लेपयुक्त प्रतिमा नहीं रखनी चाहिए। रत्नसंचय प्रकरण अनुसार पाषाण आदि की प्रतिमा घर में विराजमान करने से धन का नाश होता है। गृह मंदिर में धातु प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। कारण विशेष में अन्य प्रतिमाओं को स्थानांतरित करने से उनके खंडित होने की भी संभावना रहती है, जबकि धातु की प्रतिमा होने पर इस आशातना से बच सकते हैं।
शंका - गृह मन्दिर कहाँ होना चाहिए ?
समाधान- मन्दिर हेतु यदि अलग से कमरा बनाया गया हो तो वहाँ अथवा घर में प्रवेश करते हुए बायीं तरफ होना चाहिए । भूमितल से कम से कम डेढ़ हाथ की ऊँचाई पर गृह मन्दिर होना चाहिए।
शंका - गृह मन्दिर की पूजा करने के पश्चात संघ मन्दिर में पूजा करना जरूरी है?
समाधान- संघ मन्दिर में भी पूजा अवश्य करनी चाहिए अन्यथा वीर्यान्तराय पापकर्म आदि का बन्धन होता है।
शंका - गृह मन्दिर कैसे बनवाना चाहिए ?
समाधान- घर की दीवार में गोखला ( आला) बनवाकर उसमें प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। इससे उसके ऊपर की मंजिल की दीवार आदि आने से पैर आदि आने की आशातना नहीं लगती। यदि वैसे संभव न हो तो मन्दिर के ऊपर घुम्मट आदि बनवाना चाहिए।
शंका - गृह मन्दिर में कौनसी प्रतिष्ठा करनी चाहिए और क्यों ?
समाधान- गृह मन्दिर में चल प्रतिष्ठा का विधान है। चल प्रतिष्ठित प्रतिमा को स्थानांतरित किया जा सकता है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए यात्रा आदि अनेक कारण उपस्थित होते रहते हैं। स्थिर प्रतिष्ठा करने पर अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है। प्रतिमाजी का उत्थापन करते हुए उनके खंडित होने की भी संभावना रहती है। चल प्रतिष्ठा अधिक मास में भी हो सकती है।
शंका- वर्तमान में घर मन्दिरों की संख्या कम क्यों हो रही है ? समादान— यदि हम ऐतिहासिक तथ्यों पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होता है