________________
द्रव्य पूजा में हिंसा का प्राधान्य या अहिंसा का? ...43 में लिखा गया है कि “चोक्षाक्षतैः कणगणैर परैरपीह" इससे स्पष्ट है कि अन्य धान्यों द्वारा भी परमात्मा की पूजा की जा सकती है। वर्तमान में नंद्यावर्त, साथिया आदि चावल से बनाने का ही प्रचलन है।
शंका- सूर्योदय से पूर्व प्रक्षाल कर सकते हैं?
समाधान- शास्त्र मर्यादा के अनुसार जल पूजा का समावेश अष्टप्रकारी पूजा में होता है और उसका समय मध्याह्न काल है। परंतु वर्तमान में इस विधान का पालन नहींवत ही हो रहा है। श्रावकों की सुविधा हेतु प्रक्षाल आदि क्रियाएँ आजकल प्रात:काल में ही होने लगी है जो कि अपवाद मार्ग है। परिस्थितिवश अपवाद मार्ग का सेवन करते हुए भी मर्यादा का पालन अत्यावश्यक है। सूर्योदय से पूर्व कृत्रिम प्रकाश में जीवों की जयणा रखना असंभव है। अतः प्रक्षाल क्रिया सूर्योदय के बाद ही करनी चाहिए। इससे पहले पूजा करनी हो तो प्रतिमा की वासक्षेप पूजा कर लेनी चाहिए। प्रक्षाल आत्महित के लिए किया जाता है जबकि सूर्योदय से पूर्व प्रक्षाल करना जिनाज्ञा का उल्लंघन है जो किसी भी तरह हितकारी नहीं हो सकता।
शंका- मंदिरों में अखंड दीपक क्यों किया जाना चाहिए?
समाधान- प्रतिष्ठा-अंजनशलाका आदि विशिष्ट विधानों में वातावरण की शुद्धता, स्थान की पवित्रता, देवताओं के सानिध्य तथा सकारात्मक ऊर्जा की अपेक्षा से अखंड दीपक किया जाता है। इसी का अनुकरण करते हुए आजकल मंदिरों में अखंड दीपक जलाए जाते हैं। विधि ग्रन्थों में अखंड दीपक का निर्देश लगभग कहीं भी नहीं है। अत: इसे आवश्यक नहीं कह सकते। यद्यपि जीत व्यवहार का अनुकरण करते हुए अखंड दीपक जलाया जाए तो कोई दोष भी प्रतीत नहीं होता। आधुनिक लाईटों के उपयोग की अपेक्षा दीपक का प्रयोग वातावरण को अधिक आत्मरंजक एवं आह्लाद जनक बनाता है।
शंका- गणधर प्रतिमा की पूजा किस रूप में करनी चाहिए? और उनका अंजन विधान हो सकता है?
समाधान- गणधर प्रतिमा यदि भगवान के समान (केवली अवस्था) पद्मासन आदि मुद्रा में हो तो उसकी अंजनशलाका हो सकती है। जैसे पालिताना में विराजित पुंडरिक स्वामी की प्रतिमा। इस प्रतिमा का पूजन करने के बाद जिनमूर्ति की पूजा कर सकते हैं। छद्मस्थ अवस्था में स्थापित गणधर मूर्ति गुरु