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44... शंका नवि चित्त धरिये ! मूर्ति के समान ही पूज्य होती है और इसका अंजन विधान भी नहीं होता।
शंका- त्रिकाल पूजा क्यों करनी चाहिए? समाधान- उपदेश सप्ततिका के अनुसार
जो पूएइ तिसंझं जिणिंदरायं सया विगयदोसं।
को तइयभवे सिज्झइ, अहवा सत्तट्ठमे जम्मे ।। जिनेश्वर परमात्मा की त्रिकाल पूजा करने वाला तीसरे भव में मोक्ष प्राप्त . करता है यदि ऐसा न हो तो सात-आठ भव में तो अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
द्रव्य पूजा का लौकिक फल बारहवें अच्युत देवलोक की प्राप्ति तथा लोकोत्तर फल मोक्ष है। नाग केतु को पूष्पपूजा करते-करते मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
शंका- सचित्त द्रव्यों से जिनपूजा करने पर जीव हिंसा नहीं होती?
समाधान- जैन धर्म भावना प्रधान धर्म है। कर्म बंधन में द्रव्य की अपेक्षा भावों की मुख्यता होती है। अप्रमत्त होकर जीव रक्षा, अनुकम्पा एवं जिनाज्ञा पालन के कार्य में स्वरूप हिंसा होने पर भी भाव शुद्धि के कारण लगने वाले दोष नगण्य होते हैं। जिस प्रकार रोग निवारण हेतु की गई शल्य क्रिया में डॉक्टर द्वारा पीड़ा पहुँचाने पर भी उसे हिंसा का दोष नहीं लगता, प्राण रक्षा के उद्देश्य से दाना चुगते कबूतर को उड़ाने पर भी कर्मबंधन नहीं होता उसी तरह आशय शुद्धि के साथ की गई जिनपूजा में भी जीव हिंसा का दोष नहीं लगता।
अरिहंत परमात्मा विशेष अतिशयों से युक्त होते हैं अत: उनके कारण किसी जीव को पीड़ा नहीं पहुँचती। परमात्मा के साक्षात जन्म, दीक्षा और निर्वाण के समय उनका न्हवण सचित्त जल से ही किया जाता है। आज भी जिन प्रतिमा का प्रक्षाल इन्हीं तीन निमित्तों से किया जाता है। यह आगमोक्त विधान होने से इसमें जिनाज्ञा का पालन होता है। . जिनपूजा के विषय में यदि चिंतन करें तो साक्षात परमात्मा की भी अनिवार्य रूप से पुष्प पूजा होती है। परमात्मा के आठ प्रातिहार्य में से एक पुष्पवृष्टि नाम का प्रातिहार्य है। यदि यह अनुचित या हिंसा प्रधान होता तो परमात्मा इसका निषेध अवश्य करते। मिट्टी, बालू, ताड़पत्र, कागज आदि से निर्मित जिनप्रतिमा और चित्र आदि की जल एवं चंदन से पूजा न भी हो परन्तु पुष्प पूजा अवश्य होती है। परमात्मा के चरणों में चढ़ाने से उस जीव को निश्चित