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46... शंका नवि चित्त धरिये !
उसकी अव्यवस्था एवं क्लेश आदि से बिगड़ते परिणाम कई बार कर्म बंधन में हेतुभूत बन जाते हैं। अत: इक्षुरस से प्रक्षाल नहीं करना चाहिए।
कुछ लोग प्रश्न कर सकते हैं कि अठारह अभिषेक आदि में भी विविध औषधियों से प्रक्षाल किया जाता है, उसमें एक इक्षुरस भी होता है तथा मेरू पर्वत पर जब साक्षात परमात्मा का स्नात्र महोत्सव मनाया जाता है तब भी एक समुद्र का जल इक्षुरस के समान ही होता है, तो फिर अक्षय तृतीया के दिन इक्षुरस से न्हवण क्यों नहीं कर सकते ?
अठारह अभिषेक मंदिर के वातावरण की शुद्धि का विधान है। इसमें लोगों की भीड़ भी उतनी अधिक नहीं रहती तथा मूर्तियों की साफ सफाई भी अच्छे से की जाती है। इस क्रिया के द्वारा वातावरण आदि के दुष्प्रभाव मूर्तियों में आए विकारों को दूर किया जाता है। स्नात्र महोत्सव के दौरान जिन-जिन नदियों के जल का उपयोग किया जाता है वह स्वभाव से ही उन गुणों से युक्त होता है। जबकि अक्षय तृतीया के दिन प्रक्षाल करने में आराधना की अपेक्षा विराधना होने की अधिक संभावना रहती है। अतः वर्तमान देश-काल परिस्थिति को देखते हुए अक्षत तृतीया पर इक्षुरस से प्रक्षाल करना उचित प्रतीत नहीं होता।
शंका- मूलनायक भगवान के दोनों ओर दीपक रखना चाहिए ? समाधान- दीपक पूजा का समावेश अग्रपूजा के अन्तर्गत होता है । अग्रपूजा मूल गंभारे के बाहर करने का विधान है। इस विधान को देखते हुए मूल गंभारे में दीपक रखना विधि का उल्लंघन है एवं परमात्मा की आशातना है । दीपक नजदीक रहने से प्रतिमा को नुकसान पहुँचता है। इसी के साथ दीपक से निकलने वाली कालिमा गर्भगृह को काला बना देती है । अत: मूल गर्भगृह में परमात्मा के आस-पास दीपक नहीं रखने चाहिए।
शंका- पूजा किस क्रम पूर्वक करनी चाहिए ?
समाधान - सर्वप्रथम मूलनायक परमात्मा की पूजा करनी चाहिए । फिर मूलनायक परमात्मा के दायीं ओर के भगवान की फिर मूलनायक परमात्मा के बायीं ओर के भगवान की। फिर शेष सभी जिन प्रतिमाओं की पूजा करने के बाद सिद्धचक्र गट्टा, बीशस्थानक गट्टा आदि की। उसके पश्चात गुरु मूर्तियों की । तदनन्तर यक्ष-यक्षिणी एवं अधिष्ठायक देवी-देवताओं के मस्तक पर तिलक करके उनके सम्यगदर्शन का सम्मान करना चाहिए ।