________________
जिन प्रतिमा पूजनीय क्यों ? ... 11
स्थापना निक्षेप है और साक्षात भगवान भाव निक्षेप है। वर्तमान में भाव निक्षेप का अभाव है स्थापना निक्षेप का नहीं।
शंका- जिन प्रतिमा का स्नान करना विलेपन करना, उन पर पुष्प, आभूषण आदि चढ़ाना क्या त्यागी को भोगी बनाने जैसा नहीं है ? समाधान- व्याकरण शास्त्रियों ने अरहन्त शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है
अरिहंति वंदणनमंसणाइ, अरिहंति पूअसक्कारं । सिद्धिगमणं च अरहा, अरहंता तेण वुच्यंति । ।
अर्थात जो वंदन-नमस्कार, पूजा - सत्कार और सिद्धि गमन के योग्य हैं उसे अरहन्त कहा जाता है। इस प्रकार अरहन्त नाम ही द्रव्य पूजा का सूचक है। जिनके राग-द्वेष पूर्ण रूप से समाप्त हो गए हैं, वे दूसरों के द्वारा की गई पूजा से भोगी या रोगी नहीं बनते । यदि परमात्मा पूजा - सत्कार करने से भोगी बन जाएंगे तो क्या किसी के द्वारा निन्दा करने पर द्वेषी बन जाएंगे। परमात्मा का स्वाभाविक गुण ही है कि वे पूजक एवं निंदक के प्रति समभाव रखते हैं। कमठ और धरणेन्द्र दोनों के प्रति परमात्मा के मन में समान भाव थे। पूजा या निंदा करने वाले जीव को उसके भावों के अनुसार फल मिलता है।
आगमों में केवलज्ञान के पश्चात्त परमात्मा के आठ प्रतिहार्य का वर्णन अनेक स्थानों पर किया गया है। करोड़ों देवी-देवता परमात्मा की जय-जयकार करते हैं, भव्य समवसरण की रचना होती है, विहार करते समय परमात्मा स्वर्ण कमल पर चलते हैं। क्या इन सबसे परमात्मा का त्यागीपन चला जाता है? यदि नहीं तो फिर जिन प्रतिमा पर द्रव्य चढ़ाने से वह भोगी कैसे बन सकते हैं?
भोगवृत्ति बाह्य पदार्थों पर नहीं आंतरिक भावों पर निर्भर करती है। परमात्मा को जो-जो द्रव्य अर्पित किए जाते हैं वे वस्तुतः द्रव्य आसक्ति को न्यून करने तथा परमात्मा की उच्च अवस्थाओं का स्मरण कर स्वयं के जीवन को तद्रूप बनाने के भावों से किया जाता है ।
अत: द्रव्य चढ़ाने से परमात्मा भोगी नहीं बनते अपितु द्रव्य अर्पण करने वाले की भोगवृत्ति न्यून होती है।
शंका- मूर्ति पूजा का समावेश दान, शील, तप और भावना इन चार प्रकार के धर्म में से किसमें होता है ?