Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 64
________________ 14... शंका नवि चित्त धरिये ! रह जाते हैं। • जिन प्रतिमा एवं जिन भक्तों की निंदा और टीका-टिप्पणी करने से गाढ़ कर्मों का बंधन होता है। • व्यावहारिक स्तर पर जिन मंदिर, जिन प्रतिमा आदि सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक समृद्धि के सूचक हैं, मूर्ति न मानने से इनका विरोध हो जाता है। • संसार एवं गृहस्थी के व्यामोह से निकलकर आत्म आराधना के मार्ग में जुड़ नहीं पाते। इसी तरह की अनेक हानियाँ जिन प्रतिमा को नहीं मानने से होती है। शंका- जिन प्रतिमा कौन से आसन में होती है और क्यों? समाधान- जिन प्रतिमा मुख्यत: दो प्रकार के आसन में होती हैं- 1. पद्मासन और 2. जिनमुद्रा रूप कायोत्सर्ग मुद्रा। अरिहंत परमात्मा इसी अवस्था में मुक्ति प्राप्त करते हैं। सिद्ध अवस्था में भी उनके आत्म प्रदेश इसी रूप में रहते हैं अत: जिन प्रतिमा दो आसन में ही होती है। शंका- वीतराग भगवान के सामने दादा गुरुदेव या किसी भी गुरु प्रतिमा या चरण की पूजा आदि हो सकती है? समाधान- इस विषय में दो मत प्रचलित है। कुछ आचार्यों के अनुसार परमात्मा के सामने गुरु को वंदन आदि करने से परमात्मा की आशातना होती है। परंतु यदि सूक्ष्मता पूर्वक विचार करें तो नाकोडा तीर्थ में परमात्मा के सामने ही भैरवजी की पूजा-आरती आदि की जाती है। परमात्मा की साक्षी में ही पार्श्वपद्मावती पूजन आदि करवाए जाते हैं। तब क्या परमात्मा की आशातना नहीं होती? शास्त्रों का परिशीलन करें तो यह ज्ञात होता है कि परमात्मा के सामने गुरु को वंदन आदि हो सकता है। उसमें किसी प्रकार का दोष नहीं है। परंतु गुरु से पहले परमात्मा का पूजन-वंदन आदि करना चाहिए। नवकार मंत्र इसका प्रबल प्रमाण है, इसमें परमात्मा के समान ही आचार्य, उपाध्याय और साधु को वंदन किया जाता है। हेमचन्द्राचार्य योगशास्त्र में कहते हैं ततो गुरुणामभ्यर्णे, प्रतिपत्ति पुरःसरम् । विदधीत विशुद्धात्मा, प्रत्याख्यान प्रकाशनम् ।।25।। व्याख्या- ततोनन्तरं गुरुणां धर्माचार्याणां देववंदनार्थमागतानां

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